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गमख्वार समझा था मक्कार निकला- बैजनाथ शर्मा 'मिंटू'

बैजनाथ शर्मा 'मिंट'

अरकान - 122  122  122  122

गमख्वार समझा था मक्कार निकला|

जो दिखता था सज्जन गुनहगार निकला|

 

जिसे नासमझ हम समझते थे यारों ,

वो मुझसे भी ज्यादा समझदार निकला|

 

खुशामद की जिसको है हासिल अदाएँ,

वही जग में यारों अदाकार निकला|

 

हँसी दे के जो ले ज़माने के आँसू,

वही यार सच्चा खरीदार निकला|

 

न जीते-जी पूछे गए जिसके नगमें,

वही बाद मरने के फनकार निकला|

मौलिक व अप्रकाशित 

 

 

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Comment

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Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on December 23, 2015 at 5:24pm

आदरणीय मिथलेश वामनकर साहेब...... मार्ग दर्शन के लिए .....आभारी हूँ | 

Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on December 23, 2015 at 5:23pm

आदरणीय श्याम वर्मा जी,  आदरणीया कान्ता राय जी ............ शुक्रिया 

Comment by kanta roy on December 22, 2015 at 12:36pm

जिसे नासमझ हम समझते थे यारों ,
वो मुझसे भी ज्यादा समझदार निकला-----वाह !!!! क्या खूब समझदारी की बात हुई कही है। ग़ज़ल बड़ी ही शानदार हुई है आपकी आदरणीय बैजनाथ जी , बधाई कबूल फरमाइए।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 22, 2015 at 12:10am

आदरणीय बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई 

जिसे समझा गमख्वार, मक्कार निकला|........... मिसरा बेबह्र हो रहा था 

जो दिखता था सज्जन गुनहगार निकला|

 

जिसे नासमझ हम समझते थे यारो ,

वो हमसे भी ज्यादा समझदार निकला|.............. शुतुर्गुरबा के कारण 

 

खुशामद की जिसको है हासिल अदाएँ,

वही जग में यारो अदाकार निकला|................... यारो.... संबोधन के कारण 

 

सादर 

Comment by Shyam Narain Verma on December 21, 2015 at 3:00pm
बहुत खूब ॥ आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥
Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on December 18, 2015 at 11:04pm

आदरणीय कबीर साहेब ...............शुक्रिया |    मैं पुन: देख लेता हूं | 

Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on December 18, 2015 at 11:02pm

आदरणीय सारथी साहेब .....शुक्रिया

Comment by Samar kabeer on December 18, 2015 at 10:50pm
जनाब 'मिंटू' जी आदाब,ग़ज़ल आपने अच्छी कही है लेकिन मतले का ऊला मिसरा मुझे लय में नहीं लग रहा है ,और आपकी ग़ज़ल के इस शैर में :–

"जिसे नासमझ हम समझते थे यारों ,
वो मुझसे भी ज्यादा समझदार निकला"

आपके इस शैर में 'शुतर गुर्बा' का दोष आ गया है,बाक़ी ग़ज़ल के अशआर पसंद आए,बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Saarthi Baidyanath on December 18, 2015 at 4:28pm

वही बाद मरने के फनकार निकला|...क्या बात 

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