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ग़ज़ल -नूर -मुश्किल सवाल ज़ीस्त के आसान हो गए

22 12 12 11 22 12 12
मुश्किल सवाल ज़ीस्त के आसान हो गए,
ता-हश्र हम जो कब्र के मेहमान हो गए.
.

जब से कमाई बंद हुई सब बदल गया
अपनों पे बोझ हो गए सामान हो गए.
.
मेरे ये हर्फ़ बन न सके गीत और ग़ज़ल
उनके तो वेद हो गए कुर’आन हो गए.
.
उसने बना के भेजा हमें आदमी प् हम 
हिन्दू इसाई और मुसलमान हो गए.
.  
जब हश्र पर दिखाया गया आईना हमें  
ख़ुद के चलन पे ख़ुद ही पशेमान हो गए.
.
कुछ लोग इस जहान में इंसान भी नहीं, 
कुछ लोग ऐसे देखे जो भगवान हो गए.
.
ऐसा नहीं की आपने इस दिल को छू लिया  
मासूमियत पे आपकी कुर्बान हो गए. 
.
जब से बदल लिया है हवाओं ने अपना रुख
वाक़िफ थे लोग जितने भी अन्जान हो गए.  
.
मिसरे कहे थे चंद यूँ ही खेल खेल में
शायर के बाद उसकी वो पहचान हो गए.
.
बरसों ख़फ़ा रहे वो कभी बात तक न की
फिर एक दिन वो हम पे मेहरबान हो गए. 
.
वो रह न पाए साथ मगर धडकनों में हैं
मेरी हर एक नज़्म का उन्वान हो गए.
.
जब से हुआ है ‘नूर’ निगहबाँ चिराग़ का 
जितने भी थे रक़ीब वो तूफ़ान हो गए.
.
नूर 
मौलिक/ अप्रकाशित 

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 2, 2015 at 11:57am

शुक्रिया आ. महिमा श्री जी 

Comment by MAHIMA SHREE on April 1, 2015 at 9:13pm

बेहतरीन ग़ज़ल .... आ. नीलेश जी बहुत-2 बधाई आपको..

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 1, 2015 at 10:52am

शुक्रिया आ. धर्मेन्द्र जी 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 1, 2015 at 10:36am
अच्छी ग़ज़ल हुई है नीलेश जी, दाद कुबूल कीजिए
Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 1, 2015 at 9:53am

शुक्रिया आ. श्याम जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 1, 2015 at 9:53am

शुक्रिया आ. कृष्ण मिश्रा जी 

Comment by Shyam Mathpal on March 31, 2015 at 7:45pm

आ० नीलेश जी,

बहुत सुंदर रचना . हार्दिक बधाई.

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 31, 2015 at 4:38pm
उसने बना के भेजा हमें आदमी प् हम
हिन्दू इसाई और मुसलमान हो गए.

सुन्दर गजल पर बधाईयां आदरणीय!
Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 31, 2015 at 1:59pm

शुक्रिया आ. डॉ साहब. आप सभी साथियों की प्रतिक्रिया पाकर ग़ज़ल मुकम्मल हो गयी है
सादर  

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 31, 2015 at 1:58pm

शुक्रिया आ. शिज्जू भाई 

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