For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कई रोज से खाली पेट थी
संभाल न सकी भूख
पसीज कर
दया करूणा ने
दो रोटी दस रूपये में
इतना भरा उसका पेट
फिर नौ माह
फूला रहा 


वो कुत्ता बिल्ली नहीं थी
बिना किसी एवज
भूख मिटा दी जाती
विक्षिप्त थी तो क्या
थी तो स्त्री न 

*******************************

आशा पाण्डेय ओझा 

मौलिक अप्रकाशित 

Views: 866

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Usha Choudhary Sawhney on February 11, 2015 at 6:51pm

आदरणीय आशा पाण्डेय जी ,थी तो स्त्री ...  में इस मार्मिक बिंदु को इतनी शालीनता व् खूबसूरती से प्रस्तुत करने के लिए हार्दिक बधाई।   

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 8, 2015 at 3:45pm

अन्तः मन को झकझोरती इस शानदार रचना के लिए ढेरों बधायी स्वीकार करें  सादर 

Comment by Reenu Pathak "Roop jaisi-Roopsi" on January 29, 2015 at 10:11am

Bahot Hi sundar 

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on January 23, 2015 at 4:41pm
......भूख मिटा दी जाती
विक्षिप्त थी तो क्या
थी तो स्त्री न.......
Hamaare vikshipt samaaz ka ek aisa satya jo inn do pankatio me ubhar kar saamne aa jaata hai......BAHUT SUNDAR LEKHAN
Comment by kanta roy on January 23, 2015 at 12:37pm
बहुत बहुत बधाई इस रचना के लिए आ. आशा पाण्डेय ओझा जी
Comment by kanta roy on January 23, 2015 at 12:35pm
स्त्री में स्त्रीत्व को ढुंढना चाहे वह विक्षिप्त ही क्यों ना हो , बेहद मार्मिक प्रसंग ।
स्त्री का स्त्रीत्व ही स्त्री को कमजोर बना जाता है । क्यों स्त्री एक जन मानुष के रूप में कायम नहीं रह सकती है समाज में ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 17, 2015 at 12:24pm

उफ्फ्फ़ दिल चीर कर रख दिया इस प्रस्तुति में चंद शब्दों ने वो सब कह दिया जो एक समाज के एक घ्रणित चेहरे को कटघरे में खड़ा करने के लिए काफी हैं दिल से बधाई इस प्रस्तुति पर |

Comment by asha pandey ojha on January 15, 2015 at 12:10am

आदरणीय प्राची जी बहुत शुक्रिया यह भारत की वह सच्चाई है जो हर शहर की दो चार गलियों में रूबरू हो जाती है यह वह पीड़ा है स्त्री अपनी अस्मिता बचाने के प्रयत्न में जितनी छटपटा रही है दुचेष्टाओं के दुर्योदन उतना ही जकड रहे हैं हार्दिक धन्यवाद आपकी कीमती प्रतिक्रिया के लिए


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 14, 2015 at 11:32pm

आ० आशा जी
अभिव्यक्ति की विषयवस्तु को इतनी सांद्रता से आपने शब्द दिए हैं... मन सन्न है वेदना की तहें खोल कर.
चुभते सत्य के धरातल पर बहुत ही प्रभावी रचना हुई है
शुभकामनाएं स्वीकारें
सस्नेह

Comment by asha pandey ojha on January 14, 2015 at 11:30pm

आदरनीय सौरभ पाण्डेय जी भाईसाहब स्त्रियों की स्तिथि बहुत भयानक है इक्कसवी सदी में भी वो कॉलेज , बस,ट्रेन ,स्कूल ,बचपन जवानी बुढ़ापा ,यहाँ तक की पागलपन की स्तिथि में भी सुरक्षित नहीं .. स्त्री अस्मिता .. उसकी सुरक्षा के दावे सब खोखले घोषित हो रहे हैं .. वो पगली पागलखाने में डाली गई बच्चे सहित .. पर वो दानवीर वो तो कहीं समाज सेवा का तमगा लेकर सम्मानित हो रहा होगा .. हार्दिक आभार भाईसाहब आपकी इस चिंतन परक गंभीर प्रतिक्रिया के लिए

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service