For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कितना तामझाम...(नवगीत ) सीमा हरि शर्मा

कितना तामझाम....(नवगीत)

कितना तामझाम पसराया
जीवन आँगन में।

स्वर्णिम किरणें सुबह जगाती
दिन भर आपाधापी है।
साँझ धुँधलके से घिर जाती
रात तमस ले आती है।
तम को रोज झाड़ बुहरया
जीवन आँगन में।....कितना तामझाम पसराया

गजब मुखोटे मुख पर सजते
तन मशीन के कलपुर्जे।
जीने का दम भरने वाले
मानव ने ये खुद सरजे।
दूर खड़ा मन है खिसियाया
जीवन आँगन में।.....कितना तामझाम पसराया

रेलम पेला धक्का मुक्की
चलती आवाजाही है।
जीवन सरकस जैसा चलता
जोकर की वावाही है।
एक गिरा दूजा धकियाया
जीवन आँगन में।

कितना तामझाम पसराया
जीवन आँगन में।

.
सीमा हरि शर्मा 26.12.2014
(मेरा यह नवगीत मौलिक एवं अप्रकाशित है)

Views: 833

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by seemahari sharma on December 27, 2014 at 10:29pm
आदरणीय Shyam Narain Verma जी आभार
Comment by seemahari sharma on December 27, 2014 at 10:27pm
आदरणीय शिज्जु "शकूर"जी बहुत बहुत आभार आपकी प्रतिक्रिया से रचनाधर्मिता को प्रोत्साहन मिला है।
Comment by seemahari sharma on December 27, 2014 at 10:22pm
आदरणीय गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी आभार रचना को आपका आशीर्वाद मिला
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 27, 2014 at 8:08pm

आ० सीमा हरि जी

बेहतरीन i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 27, 2014 at 7:02pm

आदरणीया सीमा हरि जी बहुत सुंदर नवगीत का सृजन हुआ है बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by Shyam Narain Verma on December 27, 2014 at 2:16pm

 सुन्दर अभिव्यक्ति पर हार्दिक बधाई।

Comment by seemahari sharma on December 26, 2014 at 11:23pm
ajay sharma जी बहुत बहुत आभार आपकी प्रतिक्रिया अत्यंत उत्साहवर्धक है बहुत शुक्रिया
Comment by seemahari sharma on December 26, 2014 at 11:18pm
Somesh kumar जी आभार
Comment by seemahari sharma on December 26, 2014 at 11:17pm
आ.Hari Prakash Dubey जी बहुत आभार रचना पसंद करने के लिए
Comment by seemahari sharma on December 26, 2014 at 11:13pm
आभार मिथिलेश वामनकर जी आपने नवगीत को सराहा। आप सही कह रहें हैं यह टंकन त्रुटी ही है असली शब्द (बुहराया) है। धन्यवाद गलती बताने के लिए

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
1 hour ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service