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कह मुकरियाँ -- अन्नपूर्णा बाजपेई

(1)

गोरा गोरा निर्मल तन है 

उसके बिन सब सूनापन है 

न पाये तो जाएँ बच्चे रूठ

क्या सखि साजन ? ना सखी  दूध !! 

(2)

हर दम उसको शीश सजाऊँ 

पाकर उसको खिल खिल जाऊँ 

अधूरी उस बिन रहूँ न दूर 

क्या सखि साजन ? न सखि सिंदूर !!

(3)

कोमल कोमल तन है प्यारा

मन भावे लागे अति न्यारा

छुप जाये  जो डालूँ अचरा 

क्या सखि साजन ? न सखि गजरा !!

(4)

रूप सलोना खूब है पाया 

अधरों पर है मन ललचाया 

मटके ऐसे जैसे झुलनी 

क्या सखि साजन ? न सखि नथनी !! 

अप्रकाशित एवं मौलिक 

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Comment

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Comment by Dr.Prachi Singh on March 24, 2014 at 4:13pm
कथ्य को अभी और निखारने की आवश्यकता लगी...
प्रयास के लिए शुभकामनाएं
Comment by ram shiromani pathak on March 20, 2014 at 9:59pm

बहुत ही सुन्दर कह मुकरिया आदरणीया हार्दिक  बधाई आपको...... सादर  

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 14, 2014 at 10:42am

बहुत ही सुंदर कोमल भाव से संजोयी कह मुकरियाँ, बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीया अन्नपूर्णा दीदी

Comment by Omprakash Kshatriya on March 14, 2014 at 7:27am

वाह ............. :)


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 13, 2014 at 7:15pm

आदरणीया अन्नपूर्णा जी , बहुत सुन्दर कह मुकरियाँ रची है , आपको हार्दिक बधाई ॥

Comment by sanju shabdita on March 13, 2014 at 10:44am

रोचक रचना ...बधाई

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