For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गजल /वो तब होता है बेकल एक पल को कल नहीं मिलताा

मफार्इलुन मफार्इलुन मफार्इलुन मफार्इलुन


वो तब होता है बेकल एक पल को कल नहीं मिलताा
उसे सेल फोन पर जब भी कभी सिगनल नहीे मिलता।


गरीबों की दुआओं से उन्हें भी स्वर्ग मिलता है,
जिन्हें मरते समय दो बूँद गंगा जल नहीे मिलता ।

मुसाफिर की बड़ी मुषिकल से तपती दोपहर कटती ,
अगर रस्ते में बरगद , नीम या पीपल नहीें मिलता।

किसी के घर में मिलतीं सिलिलयाँ सोने की चाँदी की ,
किसी के घर में साहब दो किलो चावल नहीं मिलता।

हमारे देष में अब भी हज़ारों  गाँव हैं ऐसे ,
जहाँ पीने को सबको साफ सुथरा जल नहीं मिलता


चलन ऐसा हुआ है ट्रेन में पानी की बोतल का ,
सुराही है नदारद अब कहीं छागल नहीं मिलता।

मौलिक अप्रकाशित

Views: 679

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by annapurna bajpai on October 30, 2013 at 6:53pm

आ0 राम अवध जी सुंदर गजल रचना के लिए बधाई आपको । 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 30, 2013 at 9:41am

http://www.google.co.in/inputtools/cloud/try/.... इस लिंक को आजमाएं आदरणीय 

Comment by Sushil.Joshi on October 29, 2013 at 9:27pm

बेहद उम्दा गज़ल है आ0 राम अवध जी..... बधाई हो...... टंकण दोषों पर आ0 गिरिराज जी ने समाधान दे ही दिया है..... कोशिश कीजिएगा....

Comment by विजय मिश्र on October 29, 2013 at 3:34pm
बहुत सुंदर और समयानुकूल विषय , बधाई भाई राम अवधजी
Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on October 28, 2013 at 9:41pm

कुछ टंकणीय दोषों को नजरंदाज कर दें तो बहुत ही उम्दा गजल हुई है.... मुझे उम्मीद है सर जी कि आप जल्द जी इस समस्या का समाधान भी ढूंढ लेंगे ताकि चांद में दाग जैसा मामला फिर से न हो.... !!!!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 28, 2013 at 9:33pm

आदरणीय राम अवध भाई , मुझे क्षमा करेंगे , मै कृतिदेव से यूनिकोड कनवर्सन वाली बात और उसका असर नही जानता था , इस लिये शंका जाहिर कर दिया था !!!!!!!  मै हिन्दी आई . एम. ई साफ्ट वेयर इस्तमाल करता हूँ !!! ये सरल भी है और शुद्ध भी !!!! किसी कनवर्सन की ज़रूरत भी नही पड़ती !!!! आदरणीय बह्र मे तो मुझे भी कोई कमी नही दिखती !!!! आपको सुन्दर गज़ल के लिये पुनः बधाई !!!!!

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on October 28, 2013 at 7:34pm

आदरणीय श्री बाजपेयी साहब
मुशाफिरकी                       बड़ीमुश्क़िल                               सेतपतीदो                         पहरकटती
मुफाईलुन                       मुफाईलुन                                    मुफाईलुन                         मुफाईलुन
बाहर मे सही बैठ रही है मेरी जानकारी के अनुसार

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on October 28, 2013 at 7:04pm

आदरणीय श्री भण्डारी जी
दरअसल मैं गजल को कृतदेव 10 में टाइप करके पुन: ओपेन बुक्स आन लाइन में दिये गये टूल्स आन लाइन यूनिकोड कनवर्सन से यूनिकोड में बदलकर गजल को पोष्ट करता हूँ कनवर्सन के बाद त्राुटि बाइ डिफाल्ट आ जाती है। आप सब इतनी शुद्धता से कैसे टाइप करते है कृपया बताने का कष्ट करें।
गजल की प्रशंशा के लिये धन्यवाद।

Comment by Dr Ashutosh Vajpeyee on October 28, 2013 at 6:10pm

अच्छा प्रयास लगा किन्तु 'मुसाफिर की बड़ी मुषिकल से तपती दोपहर कटती' इस पंक्ति में प्रवाह भंग लग रहा है देख लीजिये 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 28, 2013 at 2:19pm

आदरणीय बहुत सुन्दर गज़ल कही है , आपको हार्दिक बधाई !!!! आदरणीय कुछ शब्दों के उपयोग पर शंकित हू ---

    मुषिकल ,सिलिलयाँ ,देष  -- टंकण की गलती है या ये शब्द भी चलन में हैं !! कृपा कर देख लें !!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
19 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service