For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

(रचना 1996 में एक संस्थान के निदेशक को समर्पित थी, पर आज के राष्ट्रीय सन्दर्भ में भी सटीक लगती है)


मुखिया पद की आन, महाराज! कुछ करें

शिकायत जायज़ है, प्रजा साथ नहीं

कल तक थे जहां, हैं वहीं के वहीं

दिखता नहीं काम का आलम अब कहीं

जरा कुछ करके, मिसाल कायम करें.

मुखिया पद की आन, महाराज! कुछ करें

नुमाइश बेबसी की हर कोई कर गया

हर बार मिल गया, वादा हमें नया

पालक बनकर जरा अपनी करें दया

खेती आश्वासनों की, कृपया और ना करें

मुखिया पद की आन, महाराज! कुछ करें

नींव के पत्थर गए, इमारत खो रही

संचित की जिल्द में, बातें वही की वही

तामीर कुछ करो कि मिले मंजिलें नई

ठोस योगदान की, अब तो नींव धरें!

मुखिया पद की आन, महाराज! कुछ करें

अपनों में करते हैं, खोज बेगानों की

राह तो बनी है फकत, अफसानों की

बारात सजाते रहे, खुद के अरमानों की

कुछ तो करम कभी, औरों पर भी करें

मुखिया पद की आन, महाराज!  कुछ करें

सपने बहुत देख लिए, अब तो जाग जाएं

हर वक्त एक ही राग बार बार  क्यों गाएं

एक के बाद एक साथी- भाग न जाएं

उत्तरायण इच्छुक भीष्मजी! पहले रण तो करें!

मुखिया पद की आन, महाराज!  कुछ करें

Views: 402

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 3, 2013 at 8:27am

खेती आश्वासनों की, कृपया और ना करें

मुखिया पद की आन, महाराज! कुछ करें.........बहुत खूब!

आदरणीय सुरेन्द्र वर्मा साहब सादर बहुत सुन्दर रचना. हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by बृजेश नीरज on May 1, 2013 at 11:24pm

आदरणीय सुरेन्द्र जी बहुत सुन्दर रचना! आपको ढेरों बधाई। आपकी अगली रचना की प्रतीक्षा रहेगी।
सादर!

Comment by डा॰ सुरेन्द्र कुमार वर्मा on May 1, 2013 at 7:07pm

आदरणीय केवल प्रसादजी, लक्ष्मण प्रसादजी, अखिलेशजी, प्रदीप कुशवाहजी, कुन्तीजी,

औरआगे भी प्रेरणास्पद प्रोत्साहित करती टिप्पणी देने वाले अन्य सभी का आभार. बहुत संकोच के साथ इन रचनाओं को दिन की रोशनी में ला रहा हूँ .... अपनी शैली के लिए परिचितों में वैसे भी आलोचना का पात्र रहा हूँ की किसी को भी कुछ भी कह देता हूँ...परन्तु प्रयत्न रहता है की शालीनता बनी रहे और क्षोभ, जिसे आम लोग "भड़ास" कहते हैं. व्यक्त हो जाए. आप सब के आशीर्वाद रहे तो आगे भी कुछ प्रस्तुति देने का साहस कर पाउँगा 

Comment by coontee mukerji on May 1, 2013 at 6:51pm

सपने बहुत देख लिए, अब तो जाग जाएं

हर वक्त एक ही राग बार बार  क्यों गाएं

एक के बाद एक साथी- भाग न जाएं

उत्तरायण इच्छुक भीष्मजी! पहले रण तो करें!

मुखिया पद की आन, महाराज!  कुछ करें.........बहुत सुंदर , यह बात आज भी बड़ी खूबसूरती

से निभायी जा रही है./ up to date  रचना के लिये हार्दिक बधाई ./सादर / कुंती

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 1, 2013 at 5:25pm

aaj bhi prasangik hae badhai, sir ji sadr 

Comment by akhilesh mishra on May 1, 2013 at 10:16am

bahut sundar.verma ji badhai  swikare

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 1, 2013 at 9:16am

सत्रह वर्ष पूर्व लिखी रचना आज भी उतनी ही सामयिक क्योंकि हम आज भी वही है बल्कि मुखियाजी दायित्व
निर्वाह मेंतो और भी तल्ख़ टिप्पणी के लायक है,अब तो मुखिया जी न पद छोड़ना चाहते, न चीन के खिलाफ
कुछ करना चाहते संसद भी नहीं चल रही - 
उत्तरायण इच्छुक भीष्मजी! पहले रण तो करें!
मुखिया पद की आन, महाराज! कुछ करें
अतः मुख्या जी को पद की आन रखने के सलाह आज भी प्रासंगिक, हार्दिक बधाई श्री सुरेंद्र वर्माजी

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 1, 2013 at 8:04am

आ0 सुरेन्द्र जी, वाह!....’’सपने बहुत देख लिए, अब तो जाग जाएं
हर वक्त एक ही राग बार बार क्यों गाएं
एक के बाद एक साथी. भाग न जाएं
उत्तरायण इच्छुक भीष्मजी! पहले रण तो करें!
मुखिया पद की आन, महाराज! कुछ करें’’ सुन्दर। बधाई स्वीकारे। सादर,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service