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चैत्र पवित्र नवरात्री , साल नया ये खास.

गुडी पडवा में नींव पड़े, चहुंदिश सुख की आस.

सुख दुख गतिक्रम सृष्टि का, चले सनातन चक्र.

किसी को गोचर सुखद तो, किसी को होते वक्र.

कर्म अकर्म सुकृत दुष्कृत, गति विचित्र महान.

प्रारब्ध निर्मित योग सब, सुमति कुमति निदान

जैसी गति वैसी मति, कहते लोग सुजान.

हम तो बस यही मांगते, सुमति देओ भगवान.

राम रचाई रचना, रुच रुच राचो भक्ति

नये साल वृद्धि पावें, सुरुचि सुवैभव शक्ति

समष्टि हित ही साधना, तुच्छ स्वार्थ नहीं सार

प्रेम पियुष सत्कर्म रहे, तो प्रीति करे संसार

मन कहे मैं धनकरूं, धन कर करूं गुमान.

साहब कतरनी हाथ में, राखे-निज अनुमान

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Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 12, 2013 at 6:35pm

राम रचाई रचना, रुच रुच राचो भक्ति

नये साल वृद्धि पावें, सुरुचि सुवैभव शक्ति

 जय हो मंगलमय हो 

आदरणीय सुरेन्द्र जी सादर 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 11, 2013 at 10:26am
आदरणीय सुरेंद्र जी सादर
आपको भी नाव संवत्सर की बहुत बहुत शुभकामनाएँ

आपकी रचना मे संभवतः दोहे लिखने का प्रयास किया है
किंतु हर दोहा शिल्प के लिहाज से समय माँग रहा है
कृपया नियमावली पढ़ के इन्हे सुधारने की कोशिश कीजिए
सादर
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 11, 2013 at 9:47am

नव संवत्सर के उपलक्ष में सुन्दर दोहों के लिए बधाई श्री सुरेन्द्र वर्मा जी  | 

नव वर्ष नया काज हो, उन्नति का आधार  ,

नव जोश भर तन मन में, नव चेतन संचार। 

नव संवत्सर,२०७०, गुडी पडवा, एवं चेटी-चंड के शुभ मंगल कामनाए 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 11, 2013 at 8:22am

आ0 सुरेन्द्र वर्मा जी, सुप्रभात! ’समष्टि हित ही साधना, तुच्छ स्वार्थ नहीं सार।
प्रेम पियुष सत्कर्म रहे, तो प्रीति करे संसार।।’ बहुत ही सुन्दर बात, आपको हार्दिक बधाई हो। सादर,

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