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मात्री भगिनी भार्या रूप नारी
मान जिनका अब खो रहा
ठहाका लगा रहा दुराचारी
क्यों दुयोधन हो रहा

                                                        
निर्मल मन सरल कोमल
करुना धारा वो कल- कल
गले लगा सब गरल जल
पालन करती तेरा पल -पल
निर्मम कांटे क्यों बो रहा
क्यों दुयोधन हो रहा

साक्ष्य तुझे मैं क्या दूँ 
तू नर है , महा बलधारी 
पौरुष फिर भी ,तेरा तोल  दूँ 
उदित करती तुझे वो नारी 
हे मानव ! तू थम , ठहर !
पापों को क्यूँ ढो  रहा 
क्यूँ दुयोधन हो रहा

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Comment

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Comment by MAHIMA SHREE on December 26, 2012 at 1:28pm

साक्ष्य तुझे मैं क्या दूँ
तू नर है , महा बलधारी
पौरुष फिर भी ,तेरा तोल दूँ
उदित करती तुझे वो नारी
हे मानव ! तू थम , ठहर !
पापों को क्यूँ ढो रहा
क्यूँ दुर्योधन हो रहा

नमस्कार रितेश जी .. बेहद ही सशक्त रचना .. बधाई आपको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 25, 2012 at 9:07pm

रितेश सिंह जी बहुत शानदार लिखा है आदरणीय गणेश जी की बात पर गौर करना छोटी सी टंकण त्रुटी रचना की गरिमा को बिगाड़ रही है बधाई आपको 

Comment by Shyam Narain Verma on December 25, 2012 at 10:42am

बहुत सुन्दर ,  बहुत ही सहजता के साथ वर्णन किया है बेहतरीन रचना बधाई स्वीकारें !


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 25, 2012 at 10:18am

//क्यूँ दुयोधन हो रहा//

बहुत ही सामयिक रचना, खूबसूरती से भावों को अभिव्यक्त किया है, शायद आप दुर्योधन लिखना चाह रहे थे | बधाई स्वीकार करें |

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 24, 2012 at 3:48pm

मित्र बहुत ही सहजता के साथ वर्णन किया है बेहतरीन रचना बधाई स्वीकारें

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on December 24, 2012 at 12:31pm

बहुत सुन्दर बधाई आदरणीय सादर 

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