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अधीरता

व्यग्र हो अधीर हो,कौतुक हो जिज्ञाशु हो ,
जोड़ ले पैमाना उत्थान का,
घटा ले पैमाना पतन का,
हुआ वही जो होना था,
होगा वही जो तय होगा,
परिणिति शास्वत विनिश्चित है ,
ईश्वरीय परिधि में,
मानवीय स्वाभाव न बदला है,न बदलेगा,
होगा वही जो होना है, शाश्वत युगों से.

....अलका तिवारी

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Comment by Subodh kumar on September 22, 2010 at 5:42pm
bahut sunder...prashansniya kavita....
Comment by alka tiwari on September 18, 2010 at 4:40pm
ye kavita AVSAAAAAAAAAD ke kshchadon kee hai.. Achha laga aap logon ka sochana aur abhivyakti karna,bahut-bahoot dhanyvaad aap sab mitraganon ka.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 17, 2010 at 10:40pm
यदि सभी लोग यह सोच कर बैठ जाय की जो होना है वो होकर रहेगा तो मैं समझता हूँ कि जीवन रथ डगमगा जायेगा, प्रकृति के बहुत सारे नियम फेल हो जायेंगे, विकास अवरुद्ध हो जायेगा |
हां कर्म करना चाहिये और परिणाम ईश्वर पर छोड़ देना श्रेयष्कर होगा |
Comment by sanjiv verma 'salil' on September 17, 2010 at 10:01pm
अलका जी!
यह एकांगी चिन्तन नहीं हुआ क्या? ''होगा वही जो होना है'' तो फिर प्रयास क्यों?, श्रम क्यों?, कर्म क्यों?, फिर राम-कृष्ण जो नियति को पुरुषार्थ से परिवर्तित करते हैं, गलत होंगे, 'कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन' को भूलना होगा. तुलसी ने भाग्य और कर्म में समन्वय स्थापित कर कहा: ''हुईहै वहि जो राम रची राखा को करि तरक बढ़ावे साखा'' और ''कर्म प्रधान बिस्व करि राखा, जो जस कराहि सो तस फल चाखा''. अस्तु..
Comment by Pankaj Trivedi on September 17, 2010 at 3:43pm
अलका जी,
मानवीय स्वाभाव न बदला है,न बदलेगा,
होगा वही जो होना है, शाश्वत युगों से.

बिलकुल सही कहा | चिंतन में गहराई है |
Comment by alka tiwari on September 17, 2010 at 10:55am
mr.ashish,
Is tanav bhari duniya me kuch pal ke relaxation ke liye ye chand pankitiya hain. accha laga ap ka padhan aur concerned comment bhi.
Comment by आशीष यादव on September 17, 2010 at 1:39am
alka ji pranaam,
waise to jo hona hoga wahi hoga. lekin isi baat ko lekar matbhed ho jata hai ki kya ham sab kuchh tyag kar baith n jaay, jb wahi hona hai to.

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