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मेरे घर के नज़दीक दीवारों पे

मेरे घर के नज़दीक दीवारों पे ||
आए नज़र मुझे तू इश्तिहारों पे ||

है सच्चाई की शरीफ कूचों में भी ,
अक्सर बिकता है हुस्न चौबारों पे ||

शायद सब जायज है इस सियासत में,
बस मुद्दे ही हैं किस्मत के मारो पे ||

मुमकिन ना है अब वस्ल होगा उनसे ,
बसते हैं जो आजकल वो सितारों पे ||

आखिर आए है मौसिमे -वीरानी ,
इस फिजा को महकाती इन बहारों पे ||

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 13, 2012 at 10:39am

सही किया भाई आपने जो आदरणीय तिलकराजभाईजी की कक्षा को ज्वाइन कर लिया.  उस कक्षा से हम सभी को बहुत फ़ायदा हुआ है.

Comment by Nazeel on February 12, 2012 at 6:43pm

आदरनीय सौरभ पाण्डेय जी हौसला बढाने हेतु हार्दिक आभार ..... अब मै बहर को सीखने की कोशिश कर रहा हूँ और आदरनीय तिलक जी की ग़ज़ल की कक्षा में जाकर ग़ज़ल को पूरी तरह से जान रहा हूँ.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 12, 2012 at 6:04pm

मेरे घर के नज़दीक दीवारों पे ||
आए नज़र मुझे तू इश्तिहारों पे ||

बह्र की आप विधा समझें, जो आगे की बात है.  अव्वल नज़ील भाई, इस मतले पर मेरी हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by Nazeel on February 12, 2012 at 4:01pm

धन्यवाद वीनस भाई जी मेरी अदनी -सी कोशिश को सराहने के लिए आपका हार्दिक आभार ....:)

Comment by वीनस केसरी on February 11, 2012 at 10:49pm

N .B. Nazeel जी रचना में सुन्दर भाव प्रस्तुत किया है 

सराहनीय प्रयास है


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