For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल: लाओ जंजीर मुझे पहना दो

2122 1122 22

लाओ जंजीर मुझे पहना दो 

मेरी तकदीर मुझे पहना दो

तुम ख़ुदा हो तो ये डर कैसा है

मेरी तहरीर मुझे पहना दो

जो भी चाहो वो सज़ा दो मुझको

जुर्म ए तामीर मुझे पहना दो

पहले काटो ये ज़ुबाँ मेरी फिर

कोई तज़्वीर मुझे पहना दो

मुफ़्लिसी ज़ुर्म अगर है मेरा

सारी ताजी़र मुझे पहना दो

आज आया हूँ मैं हक की खातिर

कोई तस्वीर मुझे पहना दो

मौलिक व अप्रकाशित

आज़ी तमाम

Views: 782

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Aazi Tamaam on June 9, 2021 at 2:42pm

सादर प्रणाम आ नीलेश जी

हौसला अफ़ज़ाई के लिये सहृदय शुक्रिया

सादर

Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 9, 2021 at 10:23am

आ. आज़ी जी,

ग़ज़ल के लिए बढाई.. विद्वतजन सब कह ही चुके हैं 
सादर 

Comment by Aazi Tamaam on June 8, 2021 at 10:09am

गुरु जी ये बदलाव किये हैं

पहले काटो ये ज़ुबाँ मेरी फिर

कोई तज़्वीर मुझे पहना दो 

आज आया हूँ मैं हक की खातिर

आज तक़्सीर मुझे पहना दो

Comment by Aazi Tamaam on June 6, 2021 at 10:07pm

सादर प्रणाम आ गुरु जी

हौसला अफ़ज़ाई व मार्गदर्शन के लिये सहृदय शुक्रिया

दुरुस्त करने की कोशिश करूँगा गुरु जी

सादर

Comment by Samar kabeer on June 6, 2021 at 3:40pm

जनाब आज़ी तमाम जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।

गुणीजनों से सहमत हूँ ।

'जो भी चाहो दो सज़ा मुझको तुम'

इस मिसरे पर जनाब भाई धामी जी का सुझाव अच्छा है ।

'झूठ ए तदबीर मुझे पहना दो'

इस मिसरे पर धामी जी से सहमत हूँ,इज़ाफ़त का इस्तेमाल भी उचित नहीं ।

'मैं हूँ मुफ्लिस तो हाँ मुजरिम हूँ मैं'

इस मिसरे को यूँ कह सकते हैं:-

'मुफ़लिसी जुर्म अगर है मेरा'

'कोई तस्वीर मुझे पहना दो'

इस मिसरे पर जनाब रवि शुक्ल जी से सहमत हूँ ।

Comment by Aazi Tamaam on June 5, 2021 at 10:33pm

सादर प्रणाम आ रवि शुक्ला जी

मैं कोशिश करूँगा की रदीफ़ के साथ न्याय कर सकूँ

हौसला अफ़ज़ाई के लिये सहृदय शुक्रिया

सादर

Comment by Ravi Shukla on June 5, 2021 at 9:27pm

आदरणीय आजी साहब  गजल की उम्दा कोशिश हुई है मुबारक बाद पेश करता हूँ छाेटी बहर मे काम मुशिकल होता है । तस्वीर काे पहनाना शायद काफिया के साद रदीफ का निर्वहन न हो  पाया है समर साहब की  टिप्पणी से मुझे भी कुछ सीखने को मिलेगा। बहर हाल मुबारक बाद कुबूल करें 

Comment by Aazi Tamaam on June 3, 2021 at 2:33pm

सादर प्रणाम आ धामी सर

हौसला अफ़ज़ाई के लिये सहृदय शुक्रिया

हाँ मुझे भी गुरु जी की राय का इंतज़ार है

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 3, 2021 at 12:43pm

आ. भाई आजी तमाम जी, गजल का प्रयास अच्छा है । हार्दिक बधाई । 

तुम ख़ुदा हो तो ये डर कैसा(क्योंकर) है

//जो भी चाहो वो सज़ा दो मुझको 

//झूठ ए तदबीर // वाक्यांश मेरे हिसाब से ठीक नहीं है। शेष आ. समर जी ही स्पष्ट करेंगे।

//हो के मुफ्लिस हुआ मुजरिम मैं गर

देखिएगा। सादर...

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
yesterday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service