For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सोचती हूँ उन नरपशुओं की माताओं से मिला जाये

अब  जब दामिनी चली गई है

चले जा चुके हैं उसके हत्यारे भी

वो नर पशु

जिनसे सब स्तब्ध रहे

 दरिंदगी से त्रस्त रहे

 हर तरफ मौत की मांग उठती  रही

दबती रही उठती रही बिलखती रही

 

 मेरी भी एक मांग रही

कि एक बार मुझे उन नर-पशुओं की माताओं से मिलाया जाए

 

पूछ पाऊँ उनसे

कौन से अँधेरे की औलादें थी  वो

कौन से ज़हर की मुरादें थी  वो?

धमनियों में क्या -क्या बहता रहा था 

कानों में क्या कौन कहता रहा था?

 

दादा , नाना की गोदी भी खेले थे वो

नानी दादी के सुख- दुःख भी झेले थे वो ?

 

किसी राखी के धागे भी बांधे थे कभी

रिश्तों को दिए थे काँधे भी कभी ?

भाई के संग कोई रोटी भी बांटी थी

माता भी उनको क्या कभी डांटी थी?

 

चाची भाभी दादी नानी बुआ

किसी से कभी था मेल हुआ?

 

अगर वह सब हुआ,तो यह सब कैसे हो गया ?

रिश्तों का असर कैसे खो गया ?

भूल कहाँ कैसे ऐसे  हो गयी ?

नर की संतान नराधम कैसे हो गयी

 

आदमी की औलादें

और पशुओं को भी पीछे छोड़ दें ?

एक कोख से निकले दूजी कोख झंझोड़ दें ?

अगर वह सब हुआ,तो यह सब कैसे हो गया

रिश्तों का असर कैसे खो गया ?

 

यह सब जानना बहुत ज़रूरी है

बेहद ज़रूरी है उन हालातों को समझना

और संजीदगी से खंगालना 

जिसने इन को दरिंदगी सिखाई

हैवानियत की ऐसी पाठशाला पढ़ाई

 

और अब फांसी लगती रहे लगती ही जाए

देरी की धुंध में दया न रो जाए

हवालातों पर खूब खूब बात हो

पर हालातों पर भी बात हो ही जाए

 

ध्रतराष्ट्र की भी तो आँख खुले

गांधारी की आंखो से पट्टी उतर जाए

मिट जाएँ वो राज् वो राजसभाएं

जहाँ द्रोपदी की लाज न बच पाए

 

 

वो नीति मिट जाए राजनीति मिट जाए

 मिट जाएँ वो जो हैं अंधे क़ानून

 वो अँधे सिंहासन भी न बचें

 मिट जाएँ सब सिरफिरे जनून

 

 कुछ तो अँधियारा छंटे

 कुछ तो आये कहीं से प्रकाश

 कहीं तो हिले कुछ तो हिले

 कही तो बने दामिनी को आस

 

 क्योंकि अभी कुछ नहीं बदला है

 आज भी हालात वही चल रहे हैं 

शिकार वही हैं दरिंदगी चालू है

बदले शिकारी फूल –फल रहे हैं

  

आज भी  सब स्तब्ध हैं

नर पशुओं की दरिंदगी से त्रस्त हैं

 

अंतर केवल इतना है कि

अब पक्का  बंदोबस्त है

शिकार साधनहीन हैं शिकारी पर वरदहस्त है

 

अंतर केवल इतना है कि

अब आवाज़ें गले मे घुटती हैं

और अब मौत की मांगे भी नहीं उठती है 

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 333

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by amita tiwari on December 31, 2020 at 3:09am

  आदरणीय सुरेन्द्र नाथ जी 

आपकी टिप्पणी के लिए आभारी हूँ ।

आपके मंतव्य से सहमत हूँ कि माताएँ कभी बच्चों को गलत रास्ते पर नहीं धकेलती ।लेकिन  मेरा आशय यह है कि यदि बच्चे पारिवारिक मौहौल मे रह कर भी सम्बन्धों को आदर नहीं देते हैं  तो कमी कहाँ रह जाती है वह देखना ज़रूरी है ।अपराधी जो भी अपराध करते हैं उसके व्यक्तिगत और सामाजिक कारण  होते हैं  कोई अपराधी पैदा नहीं होता ।हमें उन परिस्थितियों को समझ कर उन्हे सुधारणा है  वरना फाँसी के बाद ,एंकौंटर के बाद भी ये सिलसिले रुके तो नहीं ...ज़रूरत उस कारण को दूर करने की है जो उन्हें यह शह देते हैं ...जहां तक 'अंधेरे ' शब्द का प्रयोग है ।स्पष्ट रूप से यह अज्ञानता का रूपक है ॥गाली देने का तो सोचा भी नहीं जा सकता 

Comment by नाथ सोनांचली on December 30, 2020 at 8:28pm

आद0 अमिता तिवारी जी सादर अभिवादन

जहाँ तक मैं समझता हूँ माँ, माँ होती है और एक माँ कभी बच्चे को ग़लत वो भी इस तरह का, के रास्ते पर नहीं ढकेलती। इसलिए माता को दोषी ठहराना मेरे हिसाब से उचित नहीं। और माँ से पूछना कि ये औलादें किस अँधेरी की है, परोक्ष रूप से माँ को गाली देना है जो मेरी समझ से साहित्यिक नहीं है। शेष आप स्वयं निर्णय लीजिये। सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Monday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service