उम्र साठ-सत्तर तक की , 
आदमी पांच पीढ़ियों से रूबरू हो लेता है। 
देखता है , समझ लेता है कि 
कौन कहाँ से चला , कहाँ तक पहुंचा , 
कैसे-कैसे चला , कहाँ ठोकर लगी , , 
कहाँ लुढ़का , गिरा तो उठा या नहीं उठा , 
और उठा तो कितना सम्भला। 
कर्म , कर्म का फल , स्वर्ग - नर्क , 
कितना ज्ञान , विश्वास , सब अपनी जगह हैं। 
हिसाब -किताब सब यहीं होता दिखाई देता है। 
बस रेस में दौड़ने वालों को सिर्फ 
लाल फीता ही दिखाई देता है।
मौलिक एवं अप्रकाशित 
Comment
आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी , रचना पर आपकी उपस्थिति के लिए आभार , बधाई के लिए धन्यवाद , सादर।
आदरणीय रवि भसीन शाहिद जी , रचना को स्वीकृति प्रदान करने के लिए आभार , मुबारकबाद के लिए धन्यवाद , सादर।
आ. भाई विजय शंकर जी सादर अभिवादन। उत्तम रचना हुई है। हार्दिक बधाई ।
आदरणीय Dr. Vijai Shanker साहिब, इस सुन्दर रचना पर दाद और मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ।
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