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२२१ २१२१ १२२१ २१२

रिश्ते वफ़ा सब से निभाकर तो  देखिए 
सारे जहाँ को अपना बनाकर तो देखिए
 
इसका मिलेगे अज़्र खुदा  से  बहुत  बड़ा 
भूखे  को एक रोटी  खिलाकर तो देखिए 
 
खिल जाएगा खुशी से वो चेह्रा गुलाब सा
रोते  हुए  को  आ प हंसा  कर तो देखिए 
 
दुश्मन भी एक रोज़ मिलेगा वफ़ा के साथ 
परचम अमाँ का हर सू उड़ाकर  तो देखिए 
 
हर  राहगीर  दिल से  दुआ  देगा आपको 
इस तीरगी में  शमअ जलाकर तो देखिए 
 
खुश्बू से महक जाएगा घर  बार आपका
उजड़े हुए चमन  को  बसाकर तो देखिए 
 
इक चौंदवी का चाँद नज़र आएगा "रज़ा"
जुल्फे रूखे  हँसी  से  हटाकर  तो  देखिए 

सलीम रज़ा रीवा-09424336644

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment

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Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on December 18, 2013 at 5:53pm

बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई...

इसका मिलेगे अज़्र खुदा  से  बहुत  बड़ा, 

भूखे  को एक रोटी  खिलाकर तो देखिए... 

सादर बधाई स्वीकारें आदरणीय भाई राजा जी... 

Comment by Meena Pathak on December 18, 2013 at 2:33pm

सुन्दर गज़ल हेतु बधाई आदरणीय 

Comment by Shyam Narain Verma on December 18, 2013 at 10:57am
बहुत ही सुन्दर ,  हार्दिक बधाई आपको …………..

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