For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल--फरेब ओ झूठ की यूँ तो सदा.......(१)

बह्र -बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम
अरकान -मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन 
मापनी-1222 1222 1222 1222
***
फरेब-ओ-झूठ की यूँ तो सदा जयकार होती है,
मगर आवाज़ में सच की सदा खनकार होती है।
**
हुआ क्या है ज़माने को पड़ी क्या भाँग दरिया में 
कोई दल हो मगर क्यों एक सी सरकार होती है 
***
शजर में एक साया भी छुपा रहता है अनजाना
मगर उसके लिए ख़ुर्शीद की दरकार होती है 
***
ख़ुदा देगा कभी तो अक़्ल दहशतगर्द लोगों को 
ज़रूरत तो सुकूँ की सब को आख़िरकार होती है 
***
नहीं है ख़ौफ़ कोई भी हमें सहरा के साँपों से 
सहम जाते हैं घर में जब कभी फ़ुफ़कार होती है 
***
सनद तारीख़ में मिलती निज़ामत है तभी बदली 
वतन में जब अवामी गर कभी ललकार होती है 
***
समझदारी से जिस घर में मसाइल हल अगर होते 
ख़ुशी की पायलों की फिर वहाँ झंकार होती है 
***
'तुरंत' अक़्सर रहा है सोचता यह आप भी सोचें 
चमन में आज भी कलियों की क्यों चित्कार होती है 
***
गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' बीकानेरी 
21 /12 /2018

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 1292

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on December 22, 2018 at 10:22pm

आदरणीय समर कबीर साहेब ,कई बाऱ दो एक से अक्षर टकराना भी ऐब-ए-तनाफ़ुर नहीं होता | क्योंकि उच्चारण में कोई दिक्कत नहीं होती | उदाहरण के लिए मेरी इन  ग़ज़लों  की कोशिश देखें इसमें विद्वानों ने ऐब-ए-तनाफ़ुर नहीं माना जबकि दो न आपस में पास पास आ रहे हैं |

**

किसी का गम कभी भी गैर को सहने नहीं देता |
बिना मतलब खुदा दो अश्क भी बहने नहीं देता |
****
अगर ईमान रखता है खुदा पर दिल से इन्सां तो 
किसी सूरत महल विश्वास के ढहने नहीं देता |
***
महज औरत को बख्सी है खुसूसी ये हसीं नैमत 
खुदा सबको हया से कीमती गहने नहीं देता |
***
अगर पाले भरम बैठा कोई गफलत में मत रहना 
गुरूरो रोब इक पल भी खुदा रहने नहीं देता |
***
इशारा वो किया करता दिखाकर खौफ कुदरत का 
कभी शैतान को सीधे वो कुछ कहने नहीं देता |
****
गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' बीकानेरी |
(२)अगर हमसे मुहब्बत की ये नादानी नहीं होती |
कसम से फिर हमारे दिल की कुर्बानी नहीं होती |
***
मुझे लगता यक़ीं तुमको नहीं मेरी मुहब्बत पर 
अगर रखते रकीबों पर नज़रसानी नहीं होती | 
***
शरारत छेड़खानी तंज़ कसना है अदा तेरी 
मगर अच्छी कभी दिल से ये शैतानी नहीं होती |
***
जनम से साथ रहते हैं हमेशा ग़म मेरे घर में 
है मेरी जीस्त का हिस्सा तो हैरानी नहीं होती |
***
उठाते बोझ कुनबे का न शानों* पर अगर अपने (*कन्धों )
हमारी भी शिकनयफ़्ता* ये पेशानी* नहीं होती |( *झुर्रियों भरी **माथा )
***
अगरचे इश्क़ की परवाज हम दोनों नहीं करते 
न कोई बादशा होता कोई रानी नहीं होती |
***
हमारे मुल्क की तहजीब का पालन अगर करते 
लिबासों की समाजों में ये उर्यानी* नहीं होती |(*नंगापन )
***
नहीं अख़लाक़* सीखें गर किसी भी कौम के तालिब** (*शिष्टाचार,**छात्र )
कहीं दुनियां जहाँ में फिर क़दरदानी नहीं होती |
***
गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' बीकानेरी 

(३) बिना मेहनत हो हासिल मरहला* मुमकिन नहीं होता (*मंज़िल ) 
बिना पानी में जाये तैरना मुमकिन नहीं होता 
***
ज़मीँ से आसमाँ को देखना दिलकश लगे लेकिन 
फ़लक छूना कि पा से नापना मुमकिन नहीं होता 
***
किसी की ज़िंदगी और मौत का जब भी सवाल आये 
अचानक इस घड़ी में फ़ैसला मुमकिन नहीं होता 
***
नसीहत लाख दे दो मत करो गुस्सा नशा नफ़रत 
इन आसेबों से पल्ला झाड़ना मुमकिन नहीं होता 
***
ख़ुदा ने ख़ूब सोचा फिर ख़ुशी ग़म को बनाया है 
मनाओ रोज़ ईद और दशहरा मुमकिन नहीं होता 
***
घरोंदे रेत के चाहे बना लो खूबसूरत तुम 
हक़ीक़त है कि इनमें आसरा मुमकिन नहीं होता 
***
सराबों से समुन्दर से पसीने से शराबों से 
बुझाना तिश्नगी को साथिया मुमकिन नहीं होता 
***
सदायें लाख दे कोई ख़ुदा जब तक न ख़ुद चाहे 
किसी का भी ख़ुदा से राब्ता मुमकिन नहीं होता 
***
दुआओं के पुलिंदे देखकर अल्लाह ये सोचे 
'तुरंत ' अब ख़ुद बशर से काम क्या मुमकिन नहीं होता 
***
गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी | 

क्या यह सब ऐब-ए-तनाफ़ुर के उदाहऱण है | आदरणीय Samar kabeerसाहेब कृपया समय हो तो ऐब-ए-तनाफ़ुर को ठीक से समझाने की कृपा करें | 

***

' तुरंत' अक़्सर रहा है सोचता यह आप भी सोचें' (इस मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर किस प्रकार है जब समय मिले विस्तार से समझाएं | आप दवारा की गई नाचीज़ की हौसला आफ़जाई का शुक्रगुज़ार हूँ | 
 

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on December 22, 2018 at 9:51pm

मगर क्यों आरजू बस एक की साकार होती है'( आदरणीय समर कबीर साहेब ,वैसे तो इसमें साकार क़ाफ़िया ही खारिज है यह बात समझ में आ गई है लेकिन ऐब-ए-तनाफ़ुर का कांसेप्ट भी मुझे ठीक से समझना है | अधिकांश शायरों के कलम ऐब-ए-तनाफ़ुर से भरे पड़े हैं | मैं जो अब तक समझ पाया हूँ उसके अनुसार दो एक से शब्दों का पास आना ऐब-ए-तनाफ़ुर माना जाता है | जैसे चक कर थक कर आदि चक्कर और थक्कर का आभास देते हैं | यहाँ ऐब-ए-तनाफ़ुर हुआ | लेकिन एक की में न गायन में दिक्कत है न उच्चारण में इसे अधिकांश लोग ऐब-ए-तनाफ़ुर आजकल नहीं मानते | क्योंकि यहाँ क + की (जो मात्रा सहित है ) का मिलन हो रहा है | पहले मैं इस तरह एक से शब्दों के मिलन को ऐब-ए-तनाफ़ुर मान रहा था | लेकिन कई शायरों के कलाम में ऐसे प्रयोग देखकर और कई लोगों के समझाने पर इन्हे ऐब-ए-तनाफ़ुर मानना छोड़ दिया | वास्तव में ऐब-ए-तनाफ़ुर वहीं माना जाता है जहाँ गायन में अक्षर  जबरदस्त तरीके से टकराये | ऐसा कहकर लोगों ने मेरा ब्रेन वाश कर दिया | आप एक बार पुनः समझाएं की सही स्थिति क्या है | आपका अहसानमंद रहूंगा | सच बात तो यह है कि तक़ाबुले रदीफ़ ऐब और ऐब-ए-तनाफ़ुर को लोग सबसे ज्यादा इग्नोर करते हैं | 

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on December 22, 2018 at 9:39pm

आदरणीय समर कबीर साहेब ,आप की नज़रसानी के लिए बहुत बहुत आभार | इस्लाह के लिए भी शुक्रिया | कुछ बातें ग़ज़ल के बाबत मेरे समझ में अब तक नहीं आ पाई है ,इन्हे समझने के लिए ही मैंने यहाँ पर साइन-अप   किया है | मेरे ख्याल से इस ग़ज़ल में क़ाफ़िया 'अकार ' है | यह बात सही है कि कार रदीफ़ का हिस्सा लग रहा है लेकिन है नहीं | अधिकतर क्रिया शब्दों में प्रत्यय (ता ,ते ,ना ,ने आदि )लगाकर जो शब्द बनाये जाते हैं उनमें इस तरह प्रत्यय रदीफ़ का हिस्सा बनते देखा है | जैसे करना मरना डरना आदि ,करता चरता झरता आदि ,चलने पलने मलने आदि | लेकिन यहाँ फनकार ,ललकार ,जयकार ,झंकार ,दरकार ,सरकार ,आदि पूर्ण शब्द प्रतीत होते हैं | इसलिए मैंने तो अकार बंदिश मानकर ही ये क़वाफ़ी प्रयोग किये हैं | कार का कार्य से अर्थ लिया जाता है | यहाँ साकार अवश्य गलत क़ाफ़िया हो गया है | इस शेर को हटाना उचित होगा | इस बात को अगर आपके पास जब ही समय हो तो समझा सकें तो अनुग्रहीत समझूंगा 

Comment by Naveen Mani Tripathi on December 22, 2018 at 5:46pm

आ0 बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई इसके लिए बधाई । कबीर सर की इस्लाह महत्वपूर्ण है । 

Comment by Samar kabeer on December 22, 2018 at 4:13pm

जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास तो अच्छा है ,लेकिन इस में क़ाफ़िया क्या है,क्योंकि आपकी रदीफ़ है 'कार होती है'?

दूसरी बात :-

मगर क्यों आरजू बस एक की साकार होती है'

इस मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर देखें ।

' तुरंत' अक़्सर रहा है सोचता यह आप भी सोचें'

इस मिसरे में भी ऐब-ए-तनाफ़ुर देखें ।

वैसे इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"सभी अशआर बहुत अच्छे हुए हैं बहुत सुंदर ग़ज़ल "
1 hour ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Jul 10
Admin posted discussions
Jul 8
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service