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काफिया –आँ , रदीफ़ –पर

बहर : १२२२  १२२२  १२२२  १२२२

कुटिल जैसे बिना कारण, किया आघात नादाँ पर

भरोषा दुश्मनों पर है, नहीं है फ़क्त यकजाँ  पर |


अयाचित आपदा का फल, कहे क्या? अब पडा जाँ पर

गुनाहों की सज़ा मिलती है’, फिर क्यों प्रश्न जिन्दां पर ?

चुनावों में शरारत कर, सभी सीटों को’ जीता है

सिकंदर है वही जो जीता,’ क्यों आरोप गल्तां  पर ?

वो’ मूसलधार बारिश, कड़कती धूप सूरज की

सभी मिलकर उजाड़े बाग़ को, निंदा गुलिस्ताँ पर |

बुराई ही नहीं अच्छाई’ भी है, फिल्म में जो कुछ  

बताती है कहानी पूर्ण, क्यों आक्षेप उन्वाँ पर |

विपक्षी नेता’ के आरोप बेबुनियाद, पर अब तक

कभी कोई नहीं आपत्ति की, उसके नमकदां पर |

की’. मानव ने ही’ सब बर्बाद अंतरजात सुन्दरता

मनोहरता हुई खुद ध्वस्त, क्यों आरोप तूफाँ पर ?

बसें रेलें चली सब किन्तु हाई स्पीड है गायब

किया है खर्च बेहद, रेल गाड़ी छोड़ अरमां पर |

अरण्य अब और ज्यादा है नहीं, थोड़ा बचा ‘काली’

उजाडो मत हरी धरती, फसल निर्भर बयाबाँ पर |

 

शब्दार्थ : यकजाँ=घनिष्ट ,दिली

जिन्दां=कैद , गल्तां= लुडके हुए, हारे हुए

उन्वाँ=शीर्षक , नमकदां=नमक छिड़कना

बयाबाँ=जंगल

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment by Kalipad Prasad Mandal on October 25, 2017 at 10:37am

आदरणीय समर कबीर साहिब ,आदाब , हौला अफजाई के लिए तहे दिल से शुक्रिया |

Comment by Samar kabeer on October 24, 2017 at 10:55am
जनाब कालीपद प्रसाद मण्डल जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

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