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ग़ज़ल--बोझ उल्फ़त हो गई तो

ग़ज़ल--2122--2122
बोझ उल्फ़त हो गई तो...?
तेरी आदत हो गई तो...?

प्यार का इज़हार कर दूँ
तुझको नफ़रत हो गई तो...?

डर लगे है आशिक़ी से
यार आफ़त हो गई तो...?

मुझको कंकर तूने समझा
मेरी क़ीमत हो गई तो...?

दर्द अब भाने लगा है
दिल को राहत हो गई तो...?

बिन तेरे रुक जाए साँसे
ऐसी हालत हो गई तो...?

कितना ख़ुद को रोकता हूँ
मेरी ज़ुर्रत हो गई तो...?

बेवफ़ा ये तेरी यादें
दिल की दौलत हो गई तो...?

कर लिया मशरूफ ख़ुद को
मुझको फ़ुर्सत हो गई तो...?

दूर इतना भी न जा तू
तेरी चाहत हो गई तो...?

फ़स्ल-ए-उल्फ़त बो तो दी है
यार बरक़त हो गई तो...?

ज़िन्दगी तुझको कहा है
और तू रुख़्सत हो गई तो...?

वो मिले 'खुरशीद' तुझको
शाद किस्मत हो गई तो...?

'खुरशीद' खैराड़ी जोधपुर 9413408422
मौलिक और अप्रकाशित ।

मशरूफ-- व्यस्त(busy)
शाद--खुश/प्रसन्न

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Comment

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Comment by Afroz 'sahr' on October 6, 2017 at 12:06pm
जनाब ख़ुर्शीद साहिब बहुत अच्छी ग़ज़ल है बहुत बधाईयाँ आपको।
सही लफ़्ज़ "मशरूफ़" नही बल्कि "मसरूफ़ है। सादर,,,,
Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 6, 2017 at 9:05am

आ. ख़ुर्शीद जी 
बहुत उम्दा ग़ज़ल कही आपने 
बधाई 

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