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आज तू जो मुझे बदला सा नज़र आता है..............संतोष.

अरकान हैं 'फ़ाइलातून फ़इलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन

आज तू जो मुझे बदला सा नज़र आता है
दोस्ती में तिरी धोका सा नज़र आता है

तूने छोड़ा था मुझे यार किसी की शह पर
इसलिये आज तू तन्हा सा नज़र आता है

ये तो शतरंज की बाजी है बिछाई उसकी
तू तो इस खेल में मुहरा सा नज़र आता है

है शिकन साफ़,शिकस्तों की तिरे माथे पर
तू हमें कुछ डरा सहमा सा नज़र आता है
#संतोष
(मौलिक एवं अप्रकाशित )

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 27, 2017 at 12:38pm
कभी कभी सफलता तब मिलती जब आप सारी उम्मीद छोड़ देते है..शुभकामनाएं
Comment by santosh khirwadkar on August 25, 2017 at 2:01pm
हौसला अफ़जाई के लिये तहेदिल से शुक्रिया आदरनीय रवि साहब ..
अथक प्रयास प्रारंभ है किंतु स्पष्ट कहूँ तो अभी भी असफल ही .....
Comment by Ravi Shukla on August 25, 2017 at 1:57pm
आदरणीय संतोष जी प्रयास करे आप सफल होंगे शुभकामनाएँ आपके लिए । ग़ज़ल की कक्षा या ग़ज़ल की बाते के लेख आरम्भ से पढ़े क्रम अनुसार तो आसानी होगी । सादर
Comment by santosh khirwadkar on August 24, 2017 at 3:18pm
आभार आदरणीय रवि साहब ,मैंने इस मंच पर आप के पूर्व आदेशानुसर ही अकरान पर अभ्यास हेतु पुरज़ोर कोशिश की,किंतु क्षमा के साथ स्पष्ट रूप में कहूँ तो कुछ भी समझ नहीं आया ! इस संपूर्ण मामले में कुछ लोगों से व्यक्तिगत भेंट कर भी सीखने /समझने का प्रयत्न कर रहा हूँ
आभार!
Comment by Ravi Shukla on August 24, 2017 at 2:57pm

आदरणीय संतोष जी आपकी रचना का स्‍वागत है पर आपने यदि इसे गजल विधा के तहत पोस्‍ट किया है तो उसके अरकान लिखिये जिससे कि उसके शिल्‍प पर बात की जा सके और अरकान लिखने का नियम मंच का एक अनुशासन है । अब बात करें रचना की तो गजल के अनुसार इसका रदीफ नजर आता है हो गया उससे पहले काफिया होना चाहिये जो की सभी मिसरों ( प‍ंक्तियों में ) अलग है । गजल में बहर और काफिया जरूरी है अगर ये नहीं है तो उसे कुछ भी नाम दिया जा सकता है पर गजल नहीं । यदि आप काव्‍य की किसी विधा में अभ्‍यास करना चाहते है तो मंच पर बहुत से ग्रुप है उनमें सारी जानकारी है पढ़ कर आप लाभ ले सकते है । सादर

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