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कुण्डलियाँ छंद पर प्रथम प्रयास - निलेश नूर

कुण्डलियाँ छंद पर प्रथम प्रयास 
.
बोझ बढ़ा आवाम पर मगर न आई लाज
लगी लेखनी को अजब भक्तिभाव की खाज.
भक्तिभाव की खाज जो आधी रात जगाये
अपनी बरबादी का ज्ञानी जश्न मनाये. 
व्यापारी का देश में बुरा हुआ है हाल
मौजी निकला घूमने.. देश करे हड़ताल.
.
.
अठरह फी से दिक्कत थी अट्ठाईस से प्यार
बड़े ग़ज़ब के तर्क हैं बड़े ग़ज़ब सरकार.
बड़े ग़ज़ब सरकार लगे जी एस टी प्यारा
भक्ति करेंगे और बनेंगे हम ध्रुव तारा.
पूजन सामग्री औ बस्ता टैक्स नेट में आया
माँस हुआ करमुक्त जो सबने दाब के खाया.      
.
.
आतंकी अल-क़ायदा किया बहुत उत्पात 
लेकिन अब अल-गाय दा छाया रातों रात 
छाया रातों रात मुल्क की शान घटी है 
सिले हुए हैं लब, तुम्हारी ज़बां कटी है.
कहे नूर कविराय हटाओ गौरक्षक को 
प्रेमभाव के और तरक्की के भक्षक को.  
.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 11, 2017 at 8:42pm

डाला बोझा  टैक्स का  जरा न आयी लाज

क्षुब्ध लेखनी हो गयी  भारी हुआ अकाज

भारी हुआ अकाज  रात भर नींद न आये

बर्बादी का  साज  कौन अब जश्न मनाये ?

कहे नूर कविराय पड़ा हाटों पर ताला

राज्य हुआ असहाय भूप ने डाका डाला ---------------आ० नूर जी को समर्पित

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 11, 2017 at 8:16pm

जैसे हाकी का खिलाड़ी क्रिकेट में आये . बहुत बहुत स्वागत नूर जी . आपका पहला प्रयास है  . सराहनीय है . शिल्प पर कुछ बात भाई रवि शुक्ल जी ने की है . आप उस पर ध्यान दे . कुण्डलिया के भाव आज के  अवाम की आवाज है  ,निस्संदेह बहत बढ़िया .

Comment by Samar kabeer on July 11, 2017 at 6:52pm
जी,बहतर है ।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 11, 2017 at 6:49pm

शुक्रिया आ. समर सर... आवाम को व्यापर कर लेता हूँ :))) या बोझ बढ़ा है जेब पर कर लेता हूँ 
सादर 

Comment by Samar kabeer on July 11, 2017 at 6:37pm
जनाब निलेश'नूर'साहिब आदाब,मैं कुण्डलिया के बारे में कम ही जानता हूँ इसलिये विधान के बारे में कुछ कहने में असमर्थ हूँ,जो आता है वो इंगित कर देता हूँ ।
पहली कुण्डलिया की पहली पंक्ति में सही शब्द 'अवाम' है,देखियेगा ।
दूसरी कुण्डलिया की पहली पंक्ति में 'फ़ीसद' का मुख़फ़फ्फ 'फ़ी' अच्छा लगा,इस प्रयास पर बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 11, 2017 at 6:26pm

शुक्रिया आ. रवि जी... 
क्या मेरी रचनाओं में कहीं छन्द दोष है ..अथवा सुधार  की गुंजाइश कहाँ कहाँ है अगर इंगित करेंगे  तो सीखने में सरलता होगी. मैं स्वयं नहीं तय कर पा  रहा हूँ 
सादर 

Comment by Ravi Shukla on July 11, 2017 at 6:11pm

आदरणीय नीलेश जी बहुत बढि़या भाव लेकर आए है आप कुण्‍डलिया छंद में इनसे सहमत या असहमत की बात न करते हएु इनके शिल्‍प पर थोड़ी बात करना चाहेंगे एक दोहा और एक रोला छंद का मेल है कुण्‍डलिया जिसमें दोहा 13,11 13,11 और रोला विपरीत 11,13,11,13 के मात्रा भार से चरण होने चाहिये ।रोला भाग की हर पंक्ति का अंत 22 से हो तो प्रवाह बहुत सुंदर होता है 112 1111 से भी अंत स्‍वीकार है । साथ ही जिस शब्‍द या शब्‍द समूह से इसका आरंभ हो उसी से अंत होता है जिसके कारण इसका नाम कुण्‍डलिया पड़ा । गजल के शाइर को कुण्‍डलिया पर कलम चलाते देख कर हार्दिक ख्‍ुाशी हुई जैसे समर साहब को छंद पर काम करते देख कर खुशी हुई । मात्रा यति पदांत के अनुसार इनको एक बार और देख लेंगे तो आगे के छंदों और अच्‍छी प्रस्‍तुति होगी , इंशा अल्‍लाह ।सादर

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