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शाब्दिक कलन -१२२ १२२ १२२ १२२
*******************
मुहब्बत हुई जो खता होते होते।
सरे-राह गुजरी खफा होते होते। १
------
हसूं या रोऊँ जिंदगी पर खुदाया,
जहर हो गई है दवा होते होते। २
------
बची उम्र अब तो न जीने की कोई,
हँसी थी मुसीबत फना होते होते। ३
-------
शमां बुझ गई सो गई सारी महफ़िल,
विराना हुआ दिल वफ़ा होते होते। ४
--------
मिला तख़्त बैठें खजाना छुपाकर,
मुक़द्दस हुए अब सजा होते होते। ५
---------
रिवाजे बना क़त्ल भी वो कराएं,
चलो रह गयें वो खुदा होते होते। ६
----------
खनक जाम की बोतलों का लुढ़कना,
हमें नींद आई नशा होते होते। ७
------------------
मौलिक एवं अप्रकाशित रचना,
सुनील प्रसाद शाहाबादी।

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Comment

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Comment by Mohammed Arif on May 25, 2017 at 4:43pm
आदरणीय सुनील प्रसाद जी आदाब, बहुत ही लाजवाब ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ क़ुबूल करें । बाक़ी गूणीजन अपनी राय साझा करेंगे , इंतज़ार करें ।

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