For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"हे परवरदिगार! ये तूने मुझे आज कैसे इम्तिहां में डाल दिया ?" उसने पीछे लेटे लगभग बेहोश, युवक को एक नजर देखते हुए हाथ इबादत के लिए उठा दिए।
...... रात का दूसरा पहर ही हुआ था जब वह सोने की कोशिश में था कि 'कोठरी' के बाहर किसी के गिरने की आवाज सुनकर उसने बाहर देखा, घुप्प अँधेरे में दीवार के सहारे बेसुध पड़ा था वह अजनबी। देखने में उसकी हालत निस्संदेह ऐसी थी कि यदि उसे कुछ क्षणों में कोई सहायता नहीं मिलती तो उसका बचना मुश्किल था। युवक की हालत देख वह उसके कपडे ढीले कर उसे कुछ आराम की स्थिति में लिटा कर पानी पिलाने की कोशिश कर ही रहा था कि 'संस्कारी धागे' को देख उसके हाथ काँप गए। वक़्त की नजाकत देखते हुए उसने वही किया जो जरूरी था, लेकिन पिछले दिनों हुए दंगो के बाद के माहौल के बारें में सोच अब वह हलकान हुआ जा रहा था।...
"हे मेरे मौला, इस बच्चे की जान बख्श दे। कही इसे पिलाया आब-ए-हयात नफरत का जहर बनकर इंसान की नसों में न फ़ैल जाए। मुझे अपनी फ़िक्र नहीं, पर डरता हूँ कि लोगों का इंसानियत से यकीं न उठ जाए।"
"बाबा!" सहसा पीछे लेटे युवक ने करवट बदली। "आप जैसे फरिश्तों के होते हुए इंसानियत से किसी का यकीन कैसे उठ सकता है।"
"बेटा, फरिश्ता तो ऊपर वाला है जिसके आब-ए-हयात ने तुम्हे नयी जिंदगी बख्शी है।" युवक की ओर पलट, अपनी बात कहते हुए उसने ऊपर वाले का शुक्रिया अदा किया।
"जल तो जीवन का आधार है बाबा, जो युगों युगों से 'अमृत' बनकर धरा पर विधमान है।" युवक के चेहरे पर नवजीवन की आभा झलकने लगी थी। "और इसका साक्षात् प्रमाण मैं हूँ बाबा, जिसे आज इस अमृत से न केवल जीवनदान दिया है वरन् मेरे अंदर के उस विष को भी खत्म कर दिया है जो नफरत बनकर मेरी शिराओं में बहता था।"
"नहीं बेटा! ये पानी तो सिर्फ पानी होता है जिसका अपना कुछ नहीं होता, ये तो बस उसी के रंग में रंग जाता है जिस के साथ मिल जाए।" उसका लहजा गंभीर हो गया था। "असल जहर तो हमारे अंदर ही होता है जिसे जरूरत है बस ढूंढ कर बाहर निकालने की, और बेटा आज तुमने ये बखूबी कर भी लिया है।" अपनी बात पूरी करते हुए उसने कोठरी का दरवाजा खोल दिया, उगते सूरज का उजाला अंदर तक फ़ैलने लगा था।

.
विरेंदर 'वीर' मेहता
(मौलिक व् अप्रकाशित)

Views: 1037

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ravi Prabhakar on December 21, 2016 at 7:32am

आदरणीय वीर भाई, लघुकथा का आगाज़ बहुत अच्‍छे ढंग से हुआ है और अच्‍छा संदेश भी प्रेषित कर रही है परन्‍तु अंजाम तक पहुंचते पहुंचते लघुकथा भटक कर भाषणबाजी सी प्रतीत हो रही है (क्षमा सहित)। लघुकथा की भाषा भी औपचारिक भाषा सी लग रही है। विशेषकर /"जल तो जीवन का आधार है बाबा, जो युगों युगों से 'अमृत' बनकर धरा पर विधमान है।" युवक के चेहरे पर नवजीवन की आभा झलकने लगी थी। "और इसका साक्षात् प्रमाण मैं हूँ बाबा, जिसे आज इस अमृत से न केवल जीवनदान दिया है वरन् मेरे अंदर के उस विष को भी खत्म कर दिया है जो नफरत बनकर मेरी शिराओं में बहता था।" इस संवाद में। भाषा वातावरणानुकूल प्रतीत नहीं हो रही है। कथा का शीर्षक भी बेहतर हो सकता था। सादर

Comment by नाथ सोनांचली on December 21, 2016 at 4:06am
आद0 विरेन्दर वीर मेहता जी, सादर अभिवादन। आपने संदेशपरक उत्तम लघुकथा लिखी है। आपको मेरी हार्दिक बधाई निवेदित है।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 21, 2016 at 1:15am

आदरणीय वीरेंदर जी, आपने संदेशप्रद बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है. हार्दिक बधाई.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय सौरभ सर, मैं इस क़ाबिल तो नहीं... ये आपकी ज़र्रा नवाज़ी है। सादर। "
10 hours ago
Sushil Sarna commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय जी  इस दिलकश ग़ज़ल के लिए दिल से मुबारकबाद सर"
10 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया और सुझाव  का दिल से आभार । प्रयास रहेगा पालना…"
10 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार । भविष्य के लिए  अवगत…"
10 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आदरणीय  अशोक रक्ताले जी सृजन को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार । बहुत सुन्दर सुझाव…"
11 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. शिज्जू भाई,एक लम्बे अंतराल के बाद आपकी ग़ज़ल पढ़ रहा हूँ..बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है.मैं देखता हूँ तुझे…"
13 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . लक्ष्य

दोहा सप्तक. . . . . लक्ष्यकैसे क्यों को  छोड़  कर, करते रहो  प्रयास । लक्ष्य  भेद  का मंत्र है, मन …See More
15 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज जी, ओबीओ के प्रधान संपादक हैं और हम सब के सम्माननीय और आदरणीय हैं। उन्होंने जो भी…"
16 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय अमीरुद्दीन साहब, आपने जो सुझाव बताए हैं वे वस्तुतः गजल को लेकर आपकी समृद्ध समझ और आपके…"
16 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय सुशील भाई , दोहों के लिए आपको हार्दिक बधाई , आदरणीय सौरभ भाई जी की सलाहों कर ध्यान…"
17 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । "
17 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय शिज्जू शकूर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
17 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service