For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

१ २ २ / १ २ २ / १ २ २ /१ २

याँ कुछ लोग जीते भलों के लिए

जिओ जिंदगी दूसरों के लिए |

गुणों की नहीं माँग दुख वास्ते 

सकल गुण जरुरी सुखों के लिए |

मैं गर मुस्कुराऊं, तू मुँह मोड़ ले

शिखर क्यूँ चढूं पर्वतों के लिए ? 

मैं किस किस की बातें सुनाऊं यहाँ

जले शमअ कोई शमो के लिए  |

मकाँ और दुकाने जो भी हैं यहाँ

जवाँ केलिए ना बड़ों के लिए |

मौलिक और अप्रकाशित   

Views: 477

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on August 28, 2016 at 11:05pm
इसमें कष्ट की कोई बात नहीं ,ये तो मेरा धर्म है,मुझसे जो भी सेवा बन पड़ेगी ,ज़रूर करूँगा, स्नेह बनाये रखें ।
Comment by Kalipad Prasad Mandal on August 28, 2016 at 8:50pm

आदरणीय समर कबीर साहब ,आदाब , बहुत बहुत धन्यवाद आपका | और को उर कर सकते है ,मुझे पता नहीं था | एक निवेदन करना चाहूँगा | ग़ज़ल मैंने आभी अभी सीखना शुरू किया है | गलती होना स्वाभाविक है | मैं इसी ब्लॉग में स्वरचित ग़ज़ल पोस्ट करता रहूँगा | कृपा होगी अगर समय निकाल कर एक बार आप देख ले | आपसे ज्यादा  अच्छी तरह मेरी गलती कोई और पकड़ नहीं पायगा |

कष्ट के लिए क्षमा चाहता हूँ |

सादर 

Comment by Samar kabeer on August 27, 2016 at 8:04pm
जनाब कालीपद प्रसाद जी आदाब,आपका संशय दूर करने की कोशिश करता हूँ :-
मकाँ उर/122/दुकानें/122/सभी हैं/122/यहाँ/12
जवां के/122/लिये ना/122/बड़ों के/122/लिये/12
"और"को "उर"भी कर सकते हैं ।
"शमा"का बहुवचन "शमओं"या "शमएं"होता है ।
उम्मीद है आप मुतमइन हो गए होंगे ।
Comment by Kalipad Prasad Mandal on August 26, 2016 at 10:10pm

आदरणीय समीर कबीर साहिब आदाब ,

मकाँ १२ और २१ दुकाने १२२ सभी १२ हैं २ यहाँ १२ 

१२२ /११२ /२१२/ २१२  हों रहा है 

सानी में 

१२ २/  १२ १ /१ २ २ /१२  दुसरे अरकान १२२ के स्थान पर १२१ हो रहा है |  कृपया विस्तार से बताने की कष्ट करें | यह बहर से बाहर नहीं हो रहा है ?

शमअ  का  बहुवचन क्या होगा, कृपया बताएं 

सादर 

Comment by Samar kabeer on August 25, 2016 at 6:28pm
जनाब कालीपद प्रसाद जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
चौथे शैर में क़ाफ़िया समझ नहीं पाया कृपया "शमो"का अर्थ बताएं ।
आख़री शैर में "मकाने"शब्द सही नहीं,ये शैर इस तरह होना चाहिए:-
"मकाँ और दुकानें सभी हैं यहाँ
जवां के लिये न बड़ों के लिये "

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं हम कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२जब जिये हैं दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं हम कान देते आपके निर्देश हैं…See More
1 hour ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service