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ग़ज़ल - गुड़ मिला पानी पिला महमान को ( गिरिराज भंडारी )

गुड़ मिला पानी पिला महमान को

2122    2122    212

********************************

तब नज़र इतनी कहाँ बे ख़्वाब थी

और ऐसी भी नहीं बे आब थी 

 

नेकियाँ जाने कहाँ पर छिप गईं

इस क़दर उनकी बदी में ताब थी

 

गैर मुमकिन है अँधेरा वो करे

बिंत जो कल तक यहाँ महताब थी

 

बे यक़ीनी से ज़ुदा कुछ बात कह

ठीक है, चाहत ज़रा बेताब थी

 

डिबरियों की रोशनी, पग डंडियाँ

थीं मगर , बस्ती बड़ी शादाब थी

 शादाब- हराभरी,खुश

गुड़ मिला पानी पिला महमान को

उस तमद्दुन की अदा नायाब थी

तमद्दुन --आचार विचार,संस्कृति

अब धुएँ से भर गई है जो फ़ज़ा

थी जिया उसमें , कभी सीमाब थी

सीमाब - पारा  ( जैसे चमकीला )

***************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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Comment by गिरिराज भंडारी on August 27, 2016 at 8:32pm

आदरणीया आभा जी , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया आपका ।

Comment by Abha saxena Doonwi on August 27, 2016 at 7:49am

वाआआआआआअह बहुत उम्दा ग़ज़ल गिरिराज जी बधाई ...


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 25, 2016 at 5:24pm

आदरनीय आशुतोष भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया आपका ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 25, 2016 at 5:23pm

आदरनीय धर्मेन्द्र भाई , गज़ल पर उपस्थिति और सराहना के लिये आपका हृदय से आभार ।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 25, 2016 at 3:22pm

आदरणीय गिरिराज भाईसाब ..आज की आपकी ग़ज़ल मेरे लिए नए नए शब्दों की सौगात लेकर आयी है ..बहुत से शब्दों के अर्थ मुझे मालूम नहीं थे आपने उनके अर्थ भी देकर नए शब्दों से परिचित कराया ..इस शानदार ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर प्रणाम के साथ 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 25, 2016 at 11:56am

अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय गिरिराज जी, दाद कुबूल कीजिए


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 25, 2016 at 9:31am

आदरणीय दिनेश भाई , आपका तहे दिल से शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 25, 2016 at 9:30am

आदरनीया  प्रतिभा जी , उत्साह वर्धन के लिये आपका हृदय से आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 25, 2016 at 9:30am

आदरनीया राजेश जी , हौसला अफज़ाई का बहुत  शुक्रिया आपका


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 25, 2016 at 9:29am

आदरनीय समर भाई , वही मिसरा तय कर् लिया हूँ , आपक आभार ।

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