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२१२२/१२१२/२२ (११२)
.
उन की गर्दन लगे सुराही, हय!!
उन को लगता हूँ मैं शराबी, हय!!
.
मैंने भेजा सलाम महफ़िल में,
उस ने भेजी नज़र जवाबी, हय!!
.
मुझ को कोई चुड़ैल फाँस न ले,
गाहे-गाहे मेरी तलाशी, हय!!
.
जिस नज़र से ये दिल तमाम हुआ,
हाय चाकू, छुरी, कटारी, हय!! 
.
सारी अच्छाइयाँ उदू में थीं,
मेरी हर बात में ख़राबी, हय!! 
.
भींच लेती हैं तेरी यादें मुझे,
“नूर” हर शाम ये कहानी, हय!!    
.
मौलिक / अप्रकाशित 
निलेश "नूर"

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Comment by rajesh kumari on July 2, 2016 at 6:35pm

मुझ को कोई चुड़ैल फाँस न ले,
गाहे-गाहे मेरी तलाशी, हय!!------वाह्ह्ह्हह  हाय हाय  क्या बात कही 

बहुत ही रोचक मजेदार ग़ज़ल पढने को मिली 

मेरी तरफ से ढेरों दाद हाजिर है नीलेश भैया 

Comment by जयनित कुमार मेहता on July 2, 2016 at 12:52pm
आय हाय!

क्या खूब ग़ज़ल कही आपने आदरणीय निलेश जी।
आपके इस अंदाज़ से तो अभी-अभी परिचित हो रहा हूँ।
बहुत-बहुत बधाई आपको।
सादर!!

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