For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक ग़ज़ल ओबीओ के नाम

फ़ाइलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन/फ़इलुन/फ़ेलान

ज पर तुझको देखना है मुझे
त्र में उसने ये लिखा है मुझे

स्ल-ए-नव से मदद का तालिब हूँ
बुर्ज नफ़रत का तोड़ना है मुझे

क्या कहूँ ,कब मिलेगा मीठा फल   
ब्र करना तो आ गया है मुझे

ज तेरे बग़ैर ये जीवन
र्क जैसा ही लग रहा है मुझे

लाख दुश्वारियाँ हों, जाऊँगा
श्क़ तेरा बुला रहा है मुझे

र्म गुफ़्तार से "समर" देखो
आज फिर ज़ैर कर लिया है मुझे

_________

ओज :- ऊँचाई
नस्ल-ए-नव :- नई नस्ल
बुर्ज :- गुम्बद
गुफ़्तार :- बोलचाल

"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 1150

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on May 3, 2016 at 11:22pm
जनाब रवि शुक्ल जी आदाब,इस सम्बन्ध में आपसे फ़ोन पर गुफ़्तुगू हो चुकी है,ग़ज़ल आपको पसंद आई,आपने उसकी रूह को महसूस किया,मेरा लिखना सार्थक हुवा,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 3, 2016 at 11:21pm

आदरणीय समर साहब, आपकी ग़ज़ल को लेकर सुरूचिपूर्ण भावना सहज ही समझ में आ जाने वाली बात है. आपसे मिल कर यही अहसास होता है कि यह कितनी उत्कट है. ग़ज़ल आपकी रूह में बसती है. आज आपको जितनी आशाएँ ओबीओ से हैं, ओबीओ को भी एक मंच के हिसाब से उतनी ही उम्मीद आप जैसे सदस्य से है. यही अन्योन्याश्रय (अभिन्न) सम्बन्ध किसी रचनाकार को आवश्यक माहौल तो देता ही है, मंच को भी क़ामयाब ऊँचाई देता है. 

हाँ, यह ज़रूर है, कि हम सभी प्रशिक्षु हैं, सीख रहे हैं. यह सीखने का दौर हमारी ता ज़िन्दग़ी बना रहे. 

आमीन

Comment by Samar kabeer on May 3, 2016 at 11:17pm
जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब,ओबीओ से जुड़कर मैं समृद्ध हुवा हूँ ,यह सब आप लोगों की मुहब्बत है कि ये सब कर पा रहा हूँ ,आपको ग़ज़ल पसंद आई,आपने उसकी रूह को महसूस किया,मेरा लिखना सार्थक हुवा,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on May 3, 2016 at 11:13pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब, आपकी मुहब्बतों पर मुझे यक़ीन है ,दुआ कीजिये कि आगे भी ओबीओ की ख़िदमत इसी तरह करता रहूँ, ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on May 3, 2016 at 11:09pm
जनाब नादिर ख़ान जी आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on May 3, 2016 at 11:06pm
जनाब योगराज प्रभाकर जी आदाब,

//यह मिसरा भविष्य में हमारे तरही मुशायरे के लिए परफेक्ट रहेगा//

इसका मतलब है अभी मुझे एक और ग़ज़ल कहना है जनाब ।
Comment by Samar kabeer on May 3, 2016 at 11:02pm
जनाब गणेश जी 'बाग़ी' जी आदाब,ओबीओ के छः वर्ष पूर्ण होने की ख़ुशी में 1 april को ख़ुशियाँ और ग़म कॉलम में अपनी ग़ज़ल का तोहफ़ा पेश कर चुका हूँ जो कम दोस्तों की नज़र से गुज़रा ,मुलाहिज़ा फ़रमाऐं :-

ख़ुदा बढ़ाऐ तेरी आन-बान ओबीओ
दुआ है ऊँची रहे तेरी शान ओबीओ

हर इक विधा के यहाँ जानकार हैं मौजूद
बहुत बड़ा है तेरा ख़ानदान ओबीओ

यहाँ पे कोई बड़ा है,न कोई है छोटा
तेरी नज़र में हैं सब इक समान ओबीओ

तेरे बग़ैर तो जीना मुहाल है मेरा
कि तुझ में बसती है अब मेरी जान ओबीओ

ख़ुदा के फ़ज़्ल से छः साल हो गए पूरे
दुआ है महके यूँही गुलसितान ओबीओ

हालिया ग़ज़ल मेरी तरफ़ से अपने परिवार को एक ख़ास तोहफ़ा है, आपने ग़ज़ल की रूह को महसूस किया, मेरा लिखना सार्थक हुवा,ऐसे ही स्नेह बनाए रखें,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on May 3, 2016 at 10:51pm
जनाब तस्दीक़ अहमद ख़ान साहिब आदाब,जी ,एडिट कर दिया है,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on May 3, 2016 at 10:49pm
जनाब तेजवीर सिंह जी आदाब,आपको ग़ज़ल पसंद आई,मेरा लिखना सार्थक हुवा,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on May 3, 2016 at 10:46pm
जनाब सौरभ पांडे जी आदाब,लगता है कि शायद ग़ुब्बारे में हवा भरने की बारी आपकी है,हा हा हा...
ग़ज़ल आपको पसंद आई,आपने उसकी रूह में झाँक कर देखा,उसे महसूस किया,मेरा लिखना सार्थक हो गया,अस्ल में मैं कहने से ज़्यादा कर के दिखाने में यक़ीन रखता हूँ ,ओबीओ में मेरी जान बसती है ,इस से आप ब ख़ूबी वाक़िफ़ हैं,मैं ओबीओ का नाम अदब के आसमान की ऊँचाईयों पर देखना चाहता हूँ लेकिन मजबूरी यह है कि तख़लीक़ी अमल के सिवा मेरे पास कोई और रास्ता नहीं है,आप सभी की मुहब्बतों पर मुझे यक़ीन है ,आपकी दुआऐं साथ रहीं तो इस से ज़्यादा कर के दिखाने की कोशिश करूँगा।
ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
20 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service