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2122 2122 2122 22/112

शाम लिख ले सुबह लिख ले ज़िंदगानी लिख ले
नाम अपने हुस्न के मेरी जवानी लिख ले।

कब्ल तोहमत बेवफ़ाई की लगाने से सुन
नाम मेरा है वफा की तर्जुमानी लिख ले ।

जो बनाना चाहता है खुशनुमा संसार को
अपने होंठो पे मसर्रत की कहानी लिख ले।

मंहगाई बढ़ रही है रात औ दिन चौगुनी
वादे अच्छे दिन के निकले लंतरानी लिख ले।

लाल होगी यह जमी गर इन्सानो के खूँ से
रह न जाएगा अंबर भी आसमानी लिख ले ।

रात का सागर अगर है गहरा तो यह तय है
कल किनारों पर न होगी सरगरानी लिख ले।

होके इंसां रह नहीं सकते इन्सानो के संग
उसके घर पर रहते हैं संग आग पानी लिख ले।

आसमां में घूमने वाले जरा देख नीचे
कम नहीं है कुछ यहाँ भी शादमानी लिख ले ।
और अंत में : 
कर गया जो फेल दसवीं की परीक्षा पप्पू
अब करेगा गाँव की अपने प्रधानी लिख ले ।
..... नीरज कुमार नीर/ मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment by Neeraj Neer on December 17, 2015 at 4:05pm

बैद्यनाथ सारथी साहब आपका आभार ...... 

Comment by Neeraj Neer on December 17, 2015 at 4:04pm

.........समर कबीर साहब बहुत शुक्रिया जनाब आपका ...... 

Comment by Neeraj Neer on December 17, 2015 at 4:04pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी साहब आपका आभार इस हौसला आफजाई के लिए .........

Comment by Saarthi Baidyanath on December 17, 2015 at 2:02pm

बहुत बढ़िया ग़ज़ल 

Comment by Samar kabeer on December 16, 2015 at 10:37pm
जनाब नीरज कुमार नीर जी,आदाब,इस ग़ज़ल के लिये बधाई स्वीकार करें ।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 16, 2015 at 11:27am

बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है भाई नीरज जी हार्दिक बधाई l

कृपया ध्यान दे...

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