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सामयिक त्रिपदियाँ : ---संजीव 'सलिल'

सामयिक त्रिपदियाँ :
संजीव 'सलिल'
*

raining.gif


*
खोज कहाँ उनकी कमर,
कमरा ही आता नज़र,
लेकिन हैं वे बिफिकर..
*
विस्मय होता देखकर.
अमृत घट समझा जिसे
विषमय है वह सियासत..
*
दुर्घटना में कै मरे?
गैस रिसी भोपाल में-
बतलाते हैं कैमरे..
*
एंडरसन को छोड़कर
की गद्दारी देश से
नेताओं ने स्वार्थ वश..
*
भाग गया भोपाल से
दूर कैरवां जा छिपा
अर्जुन दोषी देश का..
*
ब्यूटी पार्लर में गयी
वृद्धा बाहर निकलकर
युवा रूपसी लग रही..
*
नश्वर है यह देह रे!
बता रहे जो भक्त को
रीझे भक्तिन-देह पे..
*
संत न करते परिश्रम
भोग लगाते रात-दिन
सर्वाधिक वे ही अधम..
*
गिद्ध भोज बारात में
टूटो भूखें की तरह
अब न मान-मनुहार है..
*
पितृ-देहरी छीन गयी
विदा होटलों से हुईं
हाय! हमारी बेटियाँ..
*
करते कन्या-दान जो
पाते हैं वर-दान वे
दे दहेज़ वर-पिता को..
*
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

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Comment

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Comment by Admin on June 16, 2010 at 8:31am
पितृ-देहरी छीन गयी
विदा होटलों से हुईं
हाय! हमारी बेटियाँ..
आचार्य जी, बहुत तीखापन है आपकी इन त्रिपदिया मे, आज की सामाजिक व्यवस्था पर सीधे चोट करती है ये रचनाये, बहुत बहुत धन्यवाद है आपका,

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on June 14, 2010 at 6:20pm
//पितृ-देहरी छीन गयी
विदा होटलों से हुईं
हाय! हमारी बेटियाँ..//
आचार्य जी, आपकी यह त्रिपदी सीधे दिल पर चोट करती है !

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 14, 2010 at 9:15am
वाह आचार्य जी वाह , सभी त्रिपदियाँ काफ़ी अच्छी बनी है, कुछ तो हसने पर और कुछ सोचने पर मज़बूर कर दे रहे है, बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति है, बहुत बहुत धन्यवाद आपका, आगे भी आप की रचनाओ का बड़े ही सिद्दत से इंतजार रहेगा,
Comment by baban pandey on June 14, 2010 at 7:16am
ब्यूटी पार्लर में गयी
वृद्धा बाहर निकलकर
युवा रूपसी लग रही..... waah भाई सलिल जी , तिन पंग्तियो में भी इतनी दम होती है ...मैंने पहली बार जाना ...बधाई

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