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ग़ज़ल- बेरहम दुनिया ने मुझसे शायरी भी छीन ली।

2122 2122 2122 212

आखिरी उम्मीद की अब ये कली भी छीन ली।
बेरहम दुनिया ने मुझसे शायरी भी छीन ली।

रौशनी की बात तो किस्मत में लिक्खी ही नहीं ।
छुप के रोया तो खुदा ने तीरगी भी छीन ली।

दिल लगाया था किसी से दिल्लगी के वास्ते।
दिल्लगी क्या कर ली ख्वाबों की हँसी भी छीन ली।

मय न पीने को मिली तो अश्क ही पीने लगा ।
देख यह किस्मत ने आँखों की नमी भी छीन ली।

दोस्ती के फूल जब मुरझा गये इक मोड पर।
मुफलिसी ने फिर कहानी प्यार की भी छीन ली।

वक्त जब बरबादियों के बीच लेकर आ गया।
तो किसी ने वो निशानी यार की भी छीन ली।

बदनसीबी साथ 'राहुल' इस तरह मेरे रही।
दाग देने को जमीं शमसान की भी छीन ली।

मौलिक व अप्रकाशित ।

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Comment

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Comment by Rahul Dangi Panchal on September 17, 2015 at 10:42am
आदरणीय गिरीराज जी बहुत आभार

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 17, 2015 at 7:18am

आदरणीय राहुल भाई , बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है , सभी अश आर बेहतरीन हुये हैं , आपको हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by Rahul Dangi Panchal on September 17, 2015 at 6:14am
आदरणीय सुनील जी बहुत बहुत आभार ।
Comment by shree suneel on September 16, 2015 at 7:55pm
बधाई आपको इस भावपूर्ण ग़ज़ल के लिए आदरणीय. सादर
Comment by Rahul Dangi Panchal on September 16, 2015 at 4:55pm
आदरणीय मुकेश जी धन्यवाद
Comment by Rahul Dangi Panchal on September 16, 2015 at 4:55pm
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी धन्यवाद आजकल बहुत सा समस्याओं से बुरी तरह घिरा हुआ हूँ इसलिए मंच को समय नहीं दे पा रहा। क्षमा करना
Comment by MUKESH SRIVASTAVA on September 16, 2015 at 12:27pm

gud gud


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 16, 2015 at 12:02pm

बढ़िया ग़ज़ल... बधाई 

Comment by Rahul Dangi Panchal on September 15, 2015 at 1:08pm
आदरणीय शुक्ला जी आभार ।
Comment by Ravi Shukla on September 15, 2015 at 11:35am

आदरणीय राहुल जी

वाह क्‍या बात है एक साथ बहुत सारी मज़बूरियां बयां कर दी

सभी शेर अपनी रवानी के साथ अच्‍छे हुए है

आखिरी शेर में शायद तकाबुले रदीफेन है

ग़ज़ल के लिये बधाई कुबूल करें ।

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