For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मित्रता की परिभाषा (लघुकथा)

काम से शहर आते वक्त धीरज ने मोतीचूर के लड्डू भी ले लिए अपने कमिश्नर हो चुके बचपन के मित्र नील के लिए । उत्साह भरे कदमों से जैसे ही बंगले में कदम रखा कि गार्ड ने रोक लिया । गार्ड के रोके जाने के बाद भी उसे उम्मीद थी कि उसका नाम सुनते ही नील दौड़ा आयेगा लेकिन गार्ड की नजरों के गहरे भाव नें मित्र की व्यस्तता की सूचना के साथ ही वो भ्रम भी तोड़ दिया। 
लड्डू के डिब्बे पर नजर गई तो वो सकुचा उठा ।गार्ड मानों उसे ताड़ चुका था ।
"साहब तो काजू कतली के सिवा कोई मिठाई नहीं खाते है । "
"ओह , लो भैया तुम ही रख लो । अपने बाल - बच्चों को खिला देना ।"
उसे मायूस कदमो से लौटते देख गार्ड बुदबुदाया
"अब दोस्ती के मायने बदल गए हैं-आज का कृष्ण अपने सुदामा के आने का संदेसा पाकर नंगे पाँव दौड़ा नहीं चला आता।"

.

( मौलिक एवम अप्रकाशित )
ज्योत्सना

Views: 1348

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by jyotsna Kapil on September 7, 2015 at 12:20pm
आ. गिरिराज भंडारी जी आज के रिश्ते आपकी सामाजिक स्थिति पर अधिक निर्भर करते हैं।आज कृष्ण किसी सुदामा के नहीं वरन किसी राज्याधीश के ही मित्र बनना अधिक पसन्द करेंगे।कथा को समय देने व सराहने के लिए हृदय से आभारी हूँ आपकी।
Comment by jyotsna Kapil on September 7, 2015 at 12:17pm
आ .मोहन बेगोवाल जी सचमुच आज के रिश्ते हैसियत देखकर निभाए जाते हैं।कथा को समय देबे एवम सराहने के लिए बहुत-2 आभार।
Comment by jyotsna Kapil on September 7, 2015 at 12:17pm
आ .मोहन बेगोवाल जी सचमुच आज के रिश्ते हैसियत देखकर निभाए जाते हैं।कथा को समय देबे एवम सराहने के लिए बहुत-2 आभार।
Comment by jyotsna Kapil on September 7, 2015 at 12:13pm
आ.कांता रॉय दी अपने कथा को अपना समय दिया एवम सराहना भी की तो महसूस हुआ की जैसे मेरा लेखन सफल हो गया।अन्तस् से आपकी आभारी हूँ।
Comment by jyotsna Kapil on September 7, 2015 at 12:03pm
आदरणीय प्रतिभा पांडे जी कथा को अपना कीमती समय देने सराहने हेतु आपकी अति आभारी हूँ. 
Comment by jyotsna Kapil on September 7, 2015 at 11:58am
आदरणीय सौरभ पांडे जी कथा पर आने सराहने हेतु सादर नमन एवं हृदयतल से आभार प्रेषित है. 
Comment by मोहन बेगोवाल on September 6, 2015 at 10:15pm

 आदरणीया ज्योत्सना जी ,हैसियत से साथ निभते  ये बात सच्च हो गई है , ऐसी लघुकथा के बधाई हो 

आदरणीया ज्योत्सना जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 6, 2015 at 9:08pm

दोस्ती जैसे रिश्ते की वर्तमान सच्चाई बयान करती आपको कथा के लिये आपको बधाई , आदरनीया  ज्योत्सना जी ।

Comment by kanta roy on September 6, 2015 at 6:48pm
बेहतरीन लघुकथा हुई है आदरणीया ज्योत्सना जी । आज के संदर्भ में ऐसी मित्रता ही अधिक देखने को मिलती है । निज हित ,निज सुख से परे इंसान अब कहाँ बाहर हो पाता है कभी । बधाई ।
Comment by pratibha pande on September 6, 2015 at 5:58pm

बहुत अच्छी लघु कथा हुई है ज्योत्स्ना जी ,बधाई आपको इस रचना के लिए 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Thursday
Admin posted discussions
Jul 8
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service