For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कोण तलाशते लोग

तुम गोलाई में तलाशते हो कोण
सीधी सरल रेखा को बदल देते हो
त्रिकोण में
हर बात में तुम तलाशते हो
अपना ही एक कोण
तुम्हें सुविधा होती है
एक कोण पकड़कर
अपनी बात कहने में
बिन कोण के तुम
भीड़ के भंवर में
उतरना नहीं चाहते
तुम्हें या तो तैरना नहीं आता
या तुम आलसी हो
स्वार्थी और सुविधा भोगी भी
तुम्हें सत्य और झूठ से भी मतलब नहीं है
इस इस देश में गढ़ डाले है
तुमने हजारो लाखों कोण
हर कोण से तुम दागते हो तीर
ह्रदय को लक्ष्य करके
जब देश नहीं रहेगा
खींचकर बाहर लाये जायेंगे
कोनो में छुपे लोग
कोनों को फिर मूँद दिया जाएगा
अंधे पत्थरों से ....
नीरज कुमार नीर/ मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 657

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Neeraj Neer on September 17, 2015 at 9:44am

आपका हार्दिक स्वागत है आदरणीय Dr. Vijai Shanker  जी ..... हार्दिक धन्यवाद 

Comment by Dr. Vijai Shanker on September 17, 2015 at 9:16am
कुछ कहूँ , कुछ जोडूँ ,

सच तो यह है कि
तुम एक कोण में रहते हो ,
वहीं तक सीमित रह गए हो ,
उससे बाहर निकल ही नहीं सकते ,
डरते हो , क्योंकि वही तुम्हारा गढ़ है ,
पहचान है , उसके बाहर तुम्हें डर है
खो जाने का , विलुप्त हो जाने का।
बधाई , बहुत बहुत , आदरणीय नीरज कुमार नीर जी , सादर।
Comment by Neeraj Neer on September 4, 2015 at 8:31pm

आपका बहुत धन्यवाद आदरणीया कांता राय जी ॥ 

Comment by Neeraj Neer on September 4, 2015 at 8:30pm

आदरणीय श्री सुनील जी रचना को समर्थन एवं प्रोत्साहन के लिए हार्दिक धन्यवाद आपका ॥ 

Comment by Neeraj Neer on September 4, 2015 at 8:30pm

आदरणीया शशि जी आपका बहुत आभार । 

Comment by Neeraj Neer on September 4, 2015 at 8:29pm

आदरणीया प्रतिभा जी रचना को समर्थन देने के लिए आपका हार्दिक आभार । 

Comment by Neeraj Neer on September 4, 2015 at 8:28pm

आदरणीय मिथिलेश जी रचना आपको पसंद आई .... बहुत बहुत आभार आपका । 

Comment by kanta roy on September 1, 2015 at 10:15pm
इस इस देश में गढ़ डाले है
तुमने हजारो लाखों कोण
हर कोण से तुम दागते हो तीर
ह्रदय को लक्ष्य करके ...... बहुत ही सुंदर रचना आदरणीय नीरज कुमार जी । बधाई स्वीकार करें ।
Comment by shree suneel on September 1, 2015 at 10:20am
जब देश नहीं रहेगा
खींचकर बाहर लाये जायेंगे
कोनो में छुपे लोग
कोनों को फिर मूँद दिया जाएगा
अंधे पत्थरों से .... सच हीं कहा है आपने. मुखरता जरूरी है. आगाह करती इस गम्भीर कविता के लिए बधाई आपको आदरणीय नीरज जी.
Comment by shashi bansal goyal on August 31, 2015 at 7:17pm
वाह बहुत ही गहन प्रस्तुति ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
8 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service