For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -- होगा तो क्या होगा? (मिथिलेश वामनकर)

1222 — 1222 — 1222  — 1222

 

प्रकाशित और नित् निर्मल जो मन होगा तो क्या होगा?

हमारा और उनका जब मिलन होगा तो क्या होगा?

 

उन्हें इस बात का आभास हो जाए तो अच्छा है-  

अगर ऐसे ही लोगों का दमन होगा तो क्या होगा?

 

तुम्हारे आगमन तक बस यही सोचा किया हमने 

ख़ुशी का आयतन फिर से सघन होगा तो क्या होगा?

 

अगर साहित्य की दुनिया में केवल नाम पाने को

सदा यूं ही नक़ल वाला सृजन होगा तो क्या होगा?

 

मुझे मंदिर की घंटी ने  सवेरे प्रश्न पूछा है -

कि मस्जिद में जो मीरा का भजन होगा तो क्या होगा?

 

बड़ी कोमल विधा है ये, सरस सौन्दर्य है, सोचो 

ग़ज़ल में व्यर्थ शब्दों का वमन होगा तो क्या होगा?

 

प्रलय की दोपहर में ये धरा किस रंग की होगी?

कभी सोचो, अगर पीला गगन होगा तो क्या होगा?

 

नगर जिसमें सभी पाषण मन के लोग रहते हैं,

मुझे मालूम है मेरा रुदन होगा तो क्या होगा.

 

चले आये हो अपना सच लिए तुम होम करने को

तनिक ये सावधानी भी,  हवन होगा तो क्या होगा?

 

अहम् अपना भुलाकर दो घड़ी बस ध्यान देना तुम

किसी को मान देकर जब नमन होगा तो क्या होगा?

 

बड़े बदलाव की बातें कहूं पर डर ये लगता है

चमन होगा तो क्या होगा, वतन होगा तो क्या होगा?

 

कभी ‘मिथिलेश’ कर लेते सुरक्षित संस्कारों को

स्वयम् से पूछ लो इनका पतन होगा तो क्या होगा?

 

------------------------------------------------------------
(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
------------------------------------------------------------

Views: 889

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on August 17, 2015 at 2:49pm
जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब,हिन्दी शब्दों को लेकर बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है आपने शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं।
Comment by दिनेश कुमार on August 17, 2015 at 12:50pm
कमाल की रचना हुई है आदरणीय मिथिलेश भाई। सराहना के लिये मेरे पास शब्द नहीं है। वाह वाह वाह
Comment by Neeraj Nishchal on August 17, 2015 at 12:33pm

क्या बात है मिथिलेश जी बहुत खूब ग़ज़ल

Comment by Ravi Shukla on August 17, 2015 at 11:38am

आदरणीय मिथिलेश जी 

मधुर बह्र में आपके शब्‍दों का भी माधुर्य ।   एक और ग़ज़ल पढ़ कर अच्‍छा लगा ।

हिंदी भाषा ने ग़ज़ल के स्‍वभाव और प्रवाह में कहीं बाधा नहीं उत्पन्‍न की वरन एक नया ही अनुभव हुअा । शेर दर शेर साधुवाद स्‍वीकार करें ।

प्रलय की दोपहर में ये धरा किस रंग की होगी?

कभी सोचो, अगर पीला गगन होगा तो क्या होगा? ..... नया और पहले प्रयोग में नहीं आया बिंब... कल्‍पना ही की जा सकती है बहुत खूब मिथिलेशजी

तुम्हारे आगमन तक बस यही सोचा किया हमने 

ख़ुशी का आयतन फिर से सघन होगा तो क्या होगा? .... इस शेर में प्रतीक्षा का आनंद सहज ही मुख्‍‍ारित हो रहा है, वाह

अगर साहित्य की दुनिया में केवल नाम पाने को

सदा यूं ही नक़ल वाला सृजन होगा तो क्या होगा? ....   आश्‍वस्‍त रहें पाठक सूप का कार्य करता है उस कचरे को बुहार कर  बाहर कर देगा  एक कवि की चिंता सहज है उसको स्‍वर देने के लिये आभार

नगर जिसमें सभी पाषण मन के लोग रहते हैं,

मुझे मालूम है मेरा रुदन होगा तो क्या होगा. .... विवशता की सुंदर प्रस्‍तुति बकौल गालिब ... कासिद के आते आते ख़त इक और लिख रखू मैं जानता हूँ जो वो लिखेगें जवाब में 

और आखिरी शेर

कभी ‘मिथिलेश’ कर लेते सुरक्षित संस्कारों को

स्वयम् से पूछ लो इनका पतन होगा तो क्या होगा?  आपकी चिंता विचारणीय है मिथिलेश जी कविता में केवल रचना का सुख ही नहीं सामाजिक दायित्‍व बोध भी साथ चल रहा है ।

चलते चलते मतले पर भी कुछ कहने का मन हो रहा है । ग़ज़ल का रदीफ ही प्रश्‍न के रूप में साथ साथ चल रहा है इस लिये मतला स्‍वीकार है । अन्‍यथा प्रथम मिसरे में ''प्रकाशित और नित निर्मल'' स्‍वभाव के साथ दूसरे मिसरे में ''मिलन की आकांक्षा'' के परिणाम पर प्रश्‍न चिह्न लगना सैद्धातिंक दृष्टि से असहज हो सकता है । यह हमारा विचार है आशा है अन्‍यथा नहीं लेगें ।

पूरी ग़ज़ल के लिये एक बार फिर से हार्दिक शुभकामनाएं स्‍वीकार करें । सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

anwar suhail updated their profile
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Friday
ajay sharma shared a profile on Facebook
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Nov 30
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service