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महंगी मुस्कान (लघुकथा )

महंगी मुस्कान ( लघुकथा )




" मुस्कान का व्यापारी हूँ । मुस्कान ही बेचता हूँ । कई प्रकार की मुस्कान है मेरे पास । "

" ये क्या बात हुई भला ..!!! मुस्कान का भी कोई व्यापार होता है ! "

" होता है बाबू , आजकल मुस्कान भी बिकती है । .... मुस्कान बडी ही महंगी चीज़ होती है । "

" अच्छा !! दिखाओ तो भला ... कितने प्रकार की मुस्कान है तुम्हारे पास ..??? "

" पहले जेब से पैसा निकालो , तुम्हारा जेब ही तय करेगा कि तुम पर कौन सा मुस्कान सुट करेगा । "

पढा लिखा बेरोजगार भला क्या जेब में हाथ डालता .... दिहाड़ी करने लायक भी ना रहा था अब वो ।

महंगे मुस्कान पर फीकी सी मायूस नजर डाल वह आगे बढ़ गया ।



कान्ता राॅय
भोपाल
मौलिक और अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 6, 2015 at 4:09pm

आदरणीया कांता जी बढ़िया प्रस्तुति हुई है हार्दिक बधाई 

महंगी मुस्कान पर फीकी सी मायूस नजर डाल वह आगे बढ़ गया ।

Comment by Pari M Shlok on July 6, 2015 at 2:38pm
हार्दिक बधाई लघुकथा हेतु
Comment by Shyam Narain Verma on July 6, 2015 at 9:56am

सुन्दर लघु कथा के लिये बधाई ।

सादर 

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