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लघुकथा : शातिर (गणेश जी बागी)

                      र्षिता क्लास की सबसे खुबसूरत लड़की थी, अधम, रंजित और उसकी मित्र मंडली, सभी उससे दोस्ती के लिए लालायित रहते थे किन्तु वह तो बस अपने काम से काम रखती थी. एक दिन हर्षिता को अकेला देख रंजित उससे बोला,
“हर्षिता मैं तुम्हे अपनी बहन बनाना चाहता हूँ क्या तुम मुझे अपना भाई होने का अधिकार दोगी ?”
माँ बाप की इकलौती बेटी हर्षिता रंजित को भाई के रूप में पाकर बहुत ख़ुश हो गयी. अब उसका उठना बैठना रंजित के साथ-साथ उसके दोस्तों के साथ भी होने लगी.
                   हर्षिता कब अधम के साथ प्यार कर बैठी उसे पता भी नहीं चला और एक दिन वह सभी वर्जनाओं को तोड़ बैठी.
क्लास में आज एक और खुबसूरत लड़की ने एडमिशन ली थी. रंजित मुस्कुराते हुए बोला,
“अबे साले अधम, इस बार भाई बनने की बारी तेरी है”

(मौलिक व अप्रकाशित)
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Comment by shashi bansal goyal on July 5, 2015 at 12:21pm
आद0 गणेश बागी जी बहुत ही सशक्त और प्रभावी रचना हुई है । बधाई ।
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 5, 2015 at 12:04am

यह आपकी कलम का ही जादू है आदरणीय बागी जी. आम घटना को सफल लघुकथा बना दिया. बहुत बहुत बधाई स्वीकारें


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 4, 2015 at 11:05pm
आदरणीय बागी सर बहुत बेहतरीन और सफल लघुकथा। पंच लाइन एक जोरदार झटका देने में सफल। इस प्रस्तुति पर आपको हार्दिक बधाई। नमन

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 4, 2015 at 10:34pm

प्रिय आदित्य कुमार जी, आपको लघुकथा अच्छी लगी यह जान मुझे भी अच्छा लगा, आभार आपका.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 4, 2015 at 10:33pm

आदरणीया कांता रॉय जी, आप स्वयम अच्छी लघुकथा लेखिका हैं, आपसे सराहना पाने से लघुकथा सार्थक हो गयी, इस प्रोत्साहन हेतु बहुत बहुत आभार.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 4, 2015 at 10:27pm

लघुकथा पर उपस्थित होने हेतु आभार आदरणीय मोहन सेठी जी.

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on July 4, 2015 at 10:03pm
//अबे साले अधम, इस बार भाई बनने की बारी तेरी है// कथा के अंत में पँहुचते ही पाठक को 440 वोल्ट का झटका लगता है और वह सन्न रह जाता है। उफ क्या सोच बन गयी है आज के यूवा की।
कथा के शीर्षक को सार्थक करती लाजवाब और जबरदस्त लघुकथा। आदरणीय गणेशजी बागी सर इस अनुपम रचना के लिये दिल से बधाई स्वीकार करे।
Comment by Aditya Kumar on July 4, 2015 at 6:46pm

पोल खोल दी सर आपने।  बहुत सही... बधाई स्वीकार करें अग्रज 

Comment by kanta roy on July 4, 2015 at 6:23pm
ओह ! बेहद गम्भीर और आज के परिवेश में युवाओं के बहकते सोच का यथार्थ चित्रण आपने इस लघुकथा किया है आदरणीय गणेश जी बागी जी .... सधे हुए आपके अपने ही अंदाज़ हमेशा की तरह लाजवाब लघुकथा हुई है । बधाई
Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on July 4, 2015 at 5:51pm

प्रभावी ...एक दम दिल पे लगती है चोट ....

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