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“क्या बना रही है रूपा” बगल वाली चाची की आवाज़ सुन कर रुपाली ने सिर उठा कर ऊपर देखा और मुस्कराहट बिखेरते हुए कहा . “आइये चाची जी ..बस धूप मे बैठी थी तो सोचा कुछ काम ही कर लूँ. आप बैठिए मै माँ को बुलाती हूँ.” “नही बेटा तू अपना काम कर मै भीतर जाकर मिल लेती हूँ.” और चाची प्यार से रूपा के सर पर हाथ फेर कर अंदर चली गई. सामने से रूपा की माँ आती दिखी. पड़ोसन से रहा न गया खुश होते हुए बोली “जीजी ! बड़ी गुणी है अपनी रूपा जिस घर जायेगी स्वर्ग बना देगी” रूपा की माँ कुछ न बोली बस हँस कर सर हिला दिया. “नही जीजी सच कहती हूँ.” पड़ोसन अपनी बात पर कायम थी. “आज ज़माने में ऐसी लड़कियां होती हैं भला ? पूरे मुहल्ले मे कोई दूसरी हो तो कहो. हर काम मे आगे है और स्वभाव की तो देवी है देवी.” “बस करो चाची नही तो आसमान में उड़ने लग जाऊंगी.” चाय की ट्रे आगे करते हुए रूपा बोली. तीनों खिलखिला कर हँस पड़ी.
सच में कोई झूठ नहीं कहा था पड़ोसन ने रूपा के बारे में. गुणों की खान थी. दूध सा उजला रंग, बड़ी-बड़ी मासूमियत भरी आँखे, घटाओं से काले बाल, इतने सौंदर्य से अनभिज्ञ शांत स्वभाव. और समझदारी तो ईश्वर ने और भी अधिक उदारता से दी. माँ को भी मान था अपनी बेटी पर. जिस काम को हाथ मे ले पूरा करे बिना दम ना ले. काम भी अपनी सुंदरता से स्वयं ही बता दे किसने किया है. हाथों में जैसे जादू हो. अब तो माँ को बस यही फिक्र इतनी गुणी बिटिया को सुयोग्य वर मिल जाये. जो उसके गुणों की कद्र करे. वो कहतें हैं ना जोडियाँ तो ऊपर से बन कर आती हैं. नींचे तो बस मिलने भर की देरी होती है. बस ऐसा ही कुछ रूपाली के साथ हुआ. दूर के रिश्ते की बुआ ने. रोहित का रिश्ता तय करवा कर ही दम लिया. माँ के मन की सारी चिंताए पल भर में ही दूर हो गई जब वो पहली बार रोहित से मिली ऐसा स्वभाव जैसे बरसों से जानतें हो. बेहद विनम्र, सुशील और स्पष्टवादी. माँ को साफ़ कह दिया था “कोई बड़ी जायजाद नहीं हैं हमारी मगर आराम से रहने को जितना जरूरी हैं मज़े से कमा लेता हूँ. रूपाली को किसी चीज़ का कष्ट ना होगा. हाँ थोड़ी जिम्मेदारियां हैं मेरी उनमे अवश्य सहयोग चाहूँगा. अगर आप अनुमति दें तो दो मिनट रूपाली से अकेले में बात कर सकता हूँ?” माँ के कुछ कहने से पहले ही बुआ जी ने आज्ञा दे दी. रूपाली जी मेरी माँ बचपन मे ही गुजर गई थीं. “मैंने और बाबूजी ने चंदा, मेरी बहन चांदनी को बड़े लाड प्यार से पाला है. मगर एक लड़की के लिए माँ का होना कितना आवश्यक है आप समझ सकती हैं. तो मै चंदा के लिए भाभी नही माँ लेने आया हूँ. क्या आप मेरी चंदा की माँ बनेंगीं?” बिना लाग-लपेट के अपनी बात रोहित ने रूपाली से कह डाली और उत्तर की प्रतीक्षा में रूपाली की ओर देखा. रूपाली ने भी सिर हिला कर सहमति दे दी.
बिना किसी ज्यादा टीम-टाम के विवाह हो गया रूपाली का. और रूपाली अपने बिना सास के सासरे पहुँच गई. ससुर जी साक्षात् वात्सल्य की मूरत. अपनी दूर दराज़ की महिला रिश्तेदारों की सहायता से सारे शुभ शगुनो के साथ अपनी बहू का गृह-प्रवेश कराया. घर के भीतर कमरे में गठरी बनी बैठी रूपाली पर सबसे पहले जिसको तरस आया वो चंदा थी. “हटो निकलों यहाँ से सुबह से भाभी माँ को घेर रखा दिखता नही कितना कितना थक गईं हैं वो.” कहते हुए चंदा ने सबको कमरे से बाहर खदेड़ दिया.. पूरे घटना-क्रम मे सिर्फ एक शब्द था जो कानों से उतर कर दिल तक पहुँच गया था रूपाली के. “भाभी माँ” अपनी धुन में मस्त चंदा, भाभी के पास आकर बोली “आप आराम से हो जाओ मैंने सबको भगा दिया है. बहुत थक गईं होंगी. मै सिर दबा दूं आपका ?कहते हुए चंदा ने रूपाली के सिर पर हाथ लगाया. “अरे नही मैं ठीक हूँ.” कह कर रूपाली ने चंदा का हाथ पकड़ कर अपने पास बिठा लिया. और प्यार से उस से बात करने लगी. उसके स्कूल की, दोस्तों की, मनपसंद खाने की, गानों की,फिल्मों की और हीरो हीरोइनों की. सब तरह की बातें कर डालीं. अब दोनों खुल चुकीं थीं आपस में. थकान में डूबी रूपा कब नींद के आगोश में चली गई. पता ही ना चला. जब आँख खुली तो शाम गहरा चुकी थी और ज्यादा से ज्यादा मेहमान या तो जा चुके थे या जाने वाले थे. रूपाली कमरे से बाहर आई तो ससुर जी खाने वाली के साथ “रात के खाने में क्या बनाना है” इस विषय पर गहन चिंतन कर रहे थे. रूपाली को सामने खड़ा देख कर बोले “दो चार दिन तो लग जायेंगे बेटा सब कुछ समझने और सम्भालने में. तब तक मैं हूँ ना जैसे करते चले आ रहे थे वैसे ही चलनें देतें हैं.” रूपाली नें ज्यादा कोई प्रतिक्रिया ना दिखाई और वापस कमरे में आ गई. आखिर नई-नवेली दुल्हन थी कहती भी तो क्या. मगर मन ही मन निश्चय सा कर रही थी. “अब आप सबको कोई कष्ट ना होने दूंगी अब मै आ गई हूँ घर में.” और सचमुच रूपाली ने थोड़े से समय मे ही घर भी संभाल लिया और परिवार भी. चंदा तो अपनी भाभी पर निसार थी जैसे. सुबह से रात तक भाभी के आगे पीछे घूमना. और हर तरह से उसका ख्याल रखना.
चंदा को अब तो दो ही काम पसंद या तो फ़िल्में देखना या अपनी भाभी से बातें करना.
कुछ ही महीनों में रूपाली सब के स्वभाव और पसंद नापसंद से परिचित हो गई. चन्दा पर विशेष ध्यान देना का वादा भी किया था उसने अपने पति से. मगर चंदा के अंदर आ रहे बदलावों को वो चाह कर भी रोक नहीं पा रही थी. पति का बाहर रहना खल रहा था मगर क्या करती वो तो जानती ही थी पहले से कि रोहित की नौकरी ही ऐसी है कि वो घर में कम और घर से बाहर ज्यादा रहेंगे. और इसी लिए उन्होंने अपनी बहन की पूरी जिम्मेदारी रूपाली को दे दी थी. इतने व्यस्त रहतें हैं वो कि कई दिन तक बात नही हो पाती और जब घर पर आतें हैं तो थकान इतनी होती है कि ज्यादा समय मिल नहीं पाता आपस में बात करनें का. मगर आज तो उनसे बात करना बहुत जरुरी हो गया था रूपा को. कल सबके जानें के बाद रूपा रोज की तरह धुलने वाले कपड़ों की जेब चेक कर रही थी तो उसको चंदा के कपड़ों में कागज की एक छोटी सी चिट मिली. जिस पर किसी का फोन नम्बर लिखा था. रूपा ने तो काम का समझ कर सम्हाल कर रख भी लिया था. दिन भर के कामों मे वो तो भूल ही गई थी इस बारे में. मगर रात में रोज की तरह जब चन्दा के कमरें मे दूध का गिलास ले कर जा रही थी तो उसको लगा कि चंदा किसी से बात कर रही है और जाने अनजाने उसके कानों में बातचीत के जो अंश पड़े उन से हैरान थी. मगर जब इस बारें में चन्दा को पूछा तो वो तो साफ़ मुकर गई. बस ये ही बात रूपाली को चुभ गई. हमेशा अपनी सहेलियों से बात करती थी तो भाभी को बताती जाती थी कि किस से क्या बात हुई. और आज रूपा ने साफ़ साफ़ सुन भी लिया तो भी नकार गई ऎसी क्या बात हुई जो अपनी भाभी से झूठ बोलना पड़ा.
अगली सुबह भी चंदा हमेशा जैसी सामान्य ना दिखी तो रूपा की चिंता और बढ़ गई. मगर रूपा ने किसी से कुछ न कहा. जब सब घर से निकल गए तब रूपा ने ऐसे ही अँधेरे में तीर चलाया. जो फोन नम्बर कल मिला था उस पर फोन किया. ये क्या तीर तो निशानें पर जा लगा था. दूसरी तरफ से आवाज़ आई “कल फिर तुम्हारी भाभी ने ज्यादा पूछ-तांछ तो नही की? उनको कुछ पता तो नही चला चंदा ?तुम चुप क्यों हो ? अब भी भाभी पास में हैं क्या?” रूपाली ने फ़ोन काट दिया. मगर वो सकते में थी चंदा किसी लड़के से चोरी –चोरी बातें कर रही थी? उफ़ सिर्फ १५ साल की बच्ची ! किस मुसीबत में खुद को डाल बैठी खुद नही जानती.” नही नहीं जैसे भी हो आज मै चंदा से बात जरुर करुँगी.” परेशान सी रूपाली के मन मे ढेर सारे सवाल चल रहे थे. बाबू जी को खाना खिला कर रूपाली चंदा की प्रतीक्षा करने लगी आज तो मानो घड़ी आगे बढ़ना ही नही चाह रही हो. जैसे तैसे तीन बज पाया. रूपाली का दिल दिमाग नज़र सब बाहर लगा था अचानक बाहर कुछ हलचल हुई, देखा चंदा किसी को हाथ हिला कर विदा कर रही थी. जाने वाले को तो रूपाली न देख सकी मगर चन्दा की भाव-भंगिमा ने सब बता दिया. सामने रूपाली को देख कर पहले तो चंदा सहम गई मगर खुद को सहज करते हुए बोली “अरे भाभी आप यहाँ कैसे खड़ी हैं ?” “तेरी राह देख रही थी” शांत भाव से रूपाली ने कहा. दोनों बिना ज्यादा कुछ बोले अंदर आ गए. चंदा अपने कमरे में जाने लगी तो रूपाली ने गंभीर स्वर मे कहा. “चंदा जब फ्री हो जाओ मेरे कमरे मे आना मुझे तुम से बात करनी है” “ठीक है भाभी आती हूँ.” चंदा ने कहा और अपने कमरे मे चली गई.
रूपाली की बेचैनी ने उसको बैठनें ना दिया. हार कर उसने चंदा को फिर से बुलाया. “तुम्हारा हुआ नही अभी?” “बस! आई भाभी.” बोलते हुए चंदा सामने आ खड़ी हुई. “जी भाभी?” चंदा ने प्रश्नवाचक निगाह से रूपाली की ओर देखा. रूपाली ने अपने हाथ मे पकड़ा हुआ कागज का टुकड़ा चंदा की ओर बढ़ाते हुए पूछा. “ये किसका नम्बर है?” चंदा एकदम से लिपट गई रूपा से “भाभी मुझे माफ कर दीजिए मै आपको बताने ही वाली थी.” चंदा तुमको क्या लगता है मै कुछ समझती नही हूँ. अगर तुम्हारे भैया को पता चलेगा तो उनको कितना बुरा लगेगा. तुमने सोचा तक नहीं. रूपाली का दर्द उसके शब्दों से साफ़ छलक रहा था. “भाभी मुझसे गलती हो गई मुझे माफ कर दीजिए.” रोती हुई चंदा ने हाथ जोड़ते हुए कहा तो रूपा का दिल पसीज गया “चलो रोना बंद करो और मुझे बताओ कौन है. चंदा ने बताना शुरू किया तो रूपा भौचक्की रह गई. वो लड़का कोई और नहीं उनका ही नौकर था. खैर इस स्थिति जो किया जा सकता था वही रूपा ने किया चंदा को समझाया बुझाया और नौकर की छुट्टी कर द.. बात तो वहीं खतम हो गई. मगर मन में कोई गाँठ सी पड़ गई रूपा के भी और चंदा के भी. रूपा समझ ना सकी इतने लाड प्यार से रखने के बाद भी चंदा किसी की ओर की कैसे आकर्षित हो सकती थी वो भी एक नौकर जो उम्र मे उस से कितना बड़ा था. और चंदा, उसने हालत से समझौता तो कर लिया मगर भाभी से दूर होती चली गई. एक प्यारा सा रिश्ता बेवजह ही दम तोड़ गया. इतनी खुशामद के बाद भी भाभी ने पूरी बात भैया को बता ही दी. ये चंदा को इतना चुभ गया कि वो चाह कर भी मन से भाभी के पास आ ही ना सकी.
धीरे धीरे वक्त बीतता गया रूपा और रोहित दो प्यारे प्यारे बच्चों के माता पिता भी बन गए और चंदा ने भी स्कूल पढ़ाई पूरी कर के कालेज में दाखिला ले लिया. इस बीच बाबूजी भी एक दिन अपनी दिल की बीमारी के चलते इस संसार से विदा हो लिए. रूपा अपने बच्चो के साथ साथ चन्दा का भी वैसे ही ख्याल रखती मगर अब उनके बीच वो घुट घुट कर बातें ना होती जो कभी हुआ करती थीं. चंदा अपने आप में ही सिमटी सी रहती. कुछ तो बाबू जी के ना रहने का असर था कुछ पढ़ाई का बोझ. रोहित अपने काम में ही व्यस्त रहता उसको इन सब में रूपा ने कभी उलझाया भी नहीं. चंदा जैसे ही बी.ए. फ़ाइनल में पहुची. रूपा ने उसकी शादी के बारे में रोहित से कहना शुरू कर दिया “अब तक मैंने आपकी हर जिम्मेदारी को अपना समझा है रोहित.” तौलिया से हाथ पोछते हुई रूपा अचानक बोली तो रोहित ने चौकं कर उसकी ओर देखा और मुस्कुराते हुए कहा. “हां जी हमारी तो जिंदगी आप से ही चल रही है बड़ा उपकार किया है बुआ जी ने हम पर” रूपा ने जैसे उसकी बात सुनी ही नहीं. “मगर अब आपकी बारी है रोहित. माँ बाबू जी होते तो हमको इतनी चिंता न होती मगर अब तो हमारा ही फ़र्ज़ बनता है कि चंदा की शादी के बारे मे सोचे.” रूपा ने धीरे से कहा “माँ ने एक रिश्ता बताया है चंदा के लिए मै चाहती हूँ कि आप एक बार उन लोगों से मिल लें.” रोहित भी बिना किसी ना नुकुर के राज़ी हो गया. जल्दी ही दोनों परिवारों ने मिल कर रिश्ता पक्का कर लिया. लड़का सरकारी नौकरी मे था छोटा और संस्कारी परिवार. रोहित और रूपा को कोई कमी ढूंढे से ना मिली तो बात पक्की हो गई. रूपा ने चंदा से कई बार इस विषय मे बात करना चाहा मगर चंदा का रवैया देख कर चंदा से बात करने की जिम्मेदारी उसने रोहित पर डाल दी. पहले तो शादी के नाम पर चंदा एक दम से बिगड उठी. मगर रोहित ने उसको प्यार से समझाया तो उसने हामी तो भर दी. मगर एक दम चुप्पी साध ली. रूपा की लाख कोशिशों के बाद भी चंदा ने शादी कि तैय्यारियों में कोई उत्साह न दिखाया. बार बार कुरेदने पर जैसे चंदा के मन का गुबार फट कर बाहर आ ही गया. “आप मुझे अपने घर से निकालना चाहती थी तो बस निकल तो रही हूँ. अब उस के लिए आप खुशी मनाइए. मै नहीं मना पाऊँगी. मै हमेशा से आप बोझ थी आपका बोझा उतर रहा है.” “ये क्या बोल रही है चंदा तुझको किसने कह दिया कि तू हम पर बोझ है. बेटी है तू हमारी और कौन माता पिता नही चाहते कि उनकी बेटी को उसके योग्य घर वर मिल जाये और और वो अपने घर-संसार में बस जाये.” रूपली ने प्यार से चंदा का हाथ पकड़ कर कहा. चंदा दायें बाएं ऐसे देखती रही जैसे कुछ सुना ही ना हो.
रूपाली को समझ नही आ रहा था कि कैसे इस लड़की को समझाया जाये. धीरे धीरे विवाह की तारीख भी निकट आती जा रही थी. रोहित और रूपा दोनों जी जान से तैय्यारी मे जुटे हुए थे. कोई कोर कसर नही रखना चाहते थे चांदनी के ब्याह मे दोनों ही. नियत समय पर विधि विधान से चांदनी का विवाह दीपक से हो गया. विदाई के समय सब देख कर अचम्भित थे. रोहित और रूपाली का तो रो रो कर बुरा हाल था. मगर चांदनी की आँख से एक आंसू तक न गिरा.
नए जीवन प्रवेश शायद ही लड़की ने इतनी बेरुखी से किया होगा जैसे चांदनी अपने नए घर में आई. ना चेहरे पर कोई खुशी का भाव ना ही मन में कोई उल्लास. सासू माँ अपनी सुन्दर और अच्छे परिवार की बहू को देख कर निहाल थी. उसके मन में क्या चल रहा था उनको तो अंदाज़ा भी न था. रस्मोरिवाज निपटते निपटते बहुत रात हो चुकी थी. चंदा थक कर चूर थी. जैसे ही उसको बिस्तर मिला दिन भर की थकान और पिछले कई दिनों की उलझनों मे फसी चंदा को सोते ज्यादा देर ना लगी. पति दीपक ने एक नज़र सोती पत्नी पर डाली और उसको कोई असुविधा ना हो इसलिए चुपचाप उठ कर दूसरे कमरे में जा कर सो गया. मगर चार दिन में ही चंदा की बेरुखी दीपक को समझ आने लगी. मगर घर की शांति बनाए रखने के लिए उसने किसी से कुछ ना कहा. पहली बार जब भाई विदाई के लिए आए तो भी चंदा के चेहरे पर खुशी का कोई भाव न था. सारे रीत-रिवाज़ यंत्रवत निपटाती हुई चंदा रोहित के साथ मायके चली तो आई मगर उसकी बिलकुल इच्छा ना थी कि रुपाली के पास जाये. मगर लोकलाज के कारण कुछ ना बोली. उधर चंदा की मानसिक स्थिति से अनजान रुपाली ने उसके स्वागत की जोरों से तैय्यारी कर रखी थी. बच्चे भी अपनी प्यारी बुआ का बेताबी से इंतजार कर रहे थे. आरती की थाली लिए नज़र उतारती भाभी को लाख चाहते हुए भी चांदनी अनदेखा ना कर सकी. और फीकी सी मुस्कान उसकी ओर उछाल दी. रुपाली तो जैसे इतने में ही धन्य हो गई. चंदा को भीतर आराम से बैठने का बोल कर अपनी पड़ोसनों को विदा करने में लग गई. मेहमानों को विदा कर जब रुपाली चंदा के पास गई तो वो बच्चों के साथ व्यस्त थी. बच्चे पिछले एक सप्ताह के एक एक पल का व्यौरा अपनी बुआ को दे रहे थे.और चंदा भी बड़े मगन भाव से दोनों की एक एक बात सुन रही थी. उनके आत्मीय पलों खलल डालना रूपा ने उचित ना समझा और रसोई-घर में आ कर खाना लगानें की तैय्यारी करने लगी. तभी रोहित नें रसोई में प्रवेश करते हुए पूछा “कहाँ हैं सब?” रुपाली नें कहा “बच्चों के साथ है.” “मै बुला लाता हूँ” कह कर रोहित भी बहन और बच्चों को बुलाने चले गए. “पता है बुआ माँ नें खीर भी बनाई है” नन्हा अमित आँखें चमकता हुआ बोला “और क्या बनाया है?” चंदा ने बड़े प्यार से भतीजे का उत्साह बढ़ाते हुए पूछा. “और मुझे नहीं पता” शरमाते हुए अमित नें बोला तो सब खिलखिला कर हस पड़े .बच्चों की उपस्थिति ने माहौल को हल्का बनाये रखा. खाना खाकरसब लोग अपने अपने कमरों मे सोनें चले गए. बच्चों का स्कूल था और रोहित को भी बाहर जाना था. रुपाली अपना काम निपटानें लगी. चंदा भी अपने कमरें मे आकर अच्छा सा महसूस कर रही थी. पिछले दिनों का तनाव भी कुछ कम सा लग रहा था. टीवी चलाकर लेटी और पता ही ना चला कि कब आँख लग गई. किचन से फुर्सत पाकर चंदा के पास बैठने के लिए रुपाली जब तक आई वो सो चुकी थी. सो कोई बात हो ही ना पाई. रूपा टीवी बंद कर अपने कमरे में चली गई.
सुबह चांदनी जब तक जगी रोहित और बच्चे जा चुके थे. रुपाली कामवाली के साथ व्यस्त थी. चंदा अपनी चाय का कप और अखबार ले कर बाहर बरामदे में आकर बैठ गई. अखबार में समाचारों पर नज़र दौड़ते हुए अचानक एक जगह उसकी निगाह चिपक गई. ये क्या चांदनी सन्न रह गई. अखबार उड़ गया और चाय का कप “छ्न्नाक” आवाज़ के साथ दो टुकड़ों में टूट गया. आवाज़ सुन कर रुपाली दौड़ती हुई चांदनी के पास आई और घबराकर पूछा “क्या हुआ चंदा?” हतप्रभ चंदा को देख कर रुपाली और घबरा गई “बता तो सही? तू ठीक तो है?”सहमी सी चंदा ने अखबार उठा कर रुपाली की ओर बढ़ा दिया. खबर पढ़ कर रुपाली के चेहरे पर भी कई रंग आए और चले गए. “शहर मे लड़कियों की खरीद फरोख्त करने वाल गिरोह का सरगना पकड़ा गया. पांच लड़कियां बेचने की बात भी स्वीकारी. अपने प्रेम जाल मे फांस कर पहले छोटी लड़कियों को घर से भगा ले जाता था, फिर उनका सौदा कर अच्छी कीमत मिलने पर बेच देता था.” और आगे पढ़ने की सामर्थ्य ना थी रुपाली में भी. बड़ा सा फोटो भी साथ में छपा था. पहचाननें में एक पल ना लगा रुपाली को भी. ये वही व्यक्ति था जिसके कारण रुपाली और चांदनी के बीच इतनी दूरियां आ गई थी. दोनों बहुत देर तक स्तब्ध बैठी रहीं. फिर स्वयं को संयत करते हुए रुपाली ने चंदा से कहा “चलो अंदर अपने कमरे मे चल देख मै तेरे लिए कुछ लाई थी रात को भी कमरे मे आई थी तू सो रही थी.” चंदा अभी भी सदमें से उबर नहीं पाई थी. कमरे मे आकर भी खोई खोई सी थी. रूपा खुद भी घबरा गई थी मगर अपनी घबराहट पर काबू पाकर चंदा को सम्हालने की कोशिश कर रही थी. अचानक चंदा उठी और रुपाली से लिपट गई. “भाभी आप तो मेरी सच्ची की माँ हो. मुझे माफ कर दो भाभी मै बहुत बुरी हूँ मैंने आपके प्यार को पहचाना ही नहीं, पता नहीं क्या क्या बुरा सोचती रही आपके बारें मे. “अब बस चुप और एक शब्द भी नहीं.” कहते हुए रुपाली ने चंदा को अपने कलेजे से लगा लिया. दोनों की आँखों से आंसुओं की धारा बहती रही जिसने बरसों से मन मे बसे मैल को धो डाला.
मौलिक एवं अप्रकाशित
Seemasingh Kanpur

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Comment by Seema Singh on July 9, 2015 at 6:58pm
आपके मार्गदर्शन का आभार सौरभ सर.. आपकी बातों को समझ कर आगे काम करुँगी स्नेहिल दिशा निर्देशन प्रदान करने का बहुत धन्यवाद..
Comment by Seema Singh on July 9, 2015 at 6:54pm
आभार डॉ श्रीवास्तव जी

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 6, 2015 at 1:22am

कहानी धाराप्रवाह बढ़ती जाती है. कहानियों के अवयव का अहम हिस्सा नाटकीयता का अभाव तनिक खलता है. वैसे रोचकता बनी रहती है. लेकिन अंत बहुत प्रभावी नहीं हुआ है. घरका नौकर ऐसा सरगना साबित हो जाय, यह गले नहीं उतरता.
लेकिन एक बात अवश्य है कि आपमें किस्साग़ोई है. इसे दिशायुक्त करें.
एक महत्त्वपूर्ण बात अवश्य साझा करना चाहूँगा. कि, पंक्चुएशन और स्पेस के महत्त्व को समझें. इनके कारण लम्बी रचनाएँ भी पठनीय हो जाती हैं.


हार्दिक शुभकामनाएँ आदरणीया सीमाजी.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 17, 2015 at 5:24pm

आ० सीमा जी

कहानी में नौकर का सरगना वाला रूप  अच्छा टर्निंग पॉइंट है पर कथा में किस्सागोई अधिक है कथा शिल्प  की कुछ कमी है , इसे तीन चार भिन्न दृश्यों में बांटकर आकर्षक बनाया  जा सकता था . पर अगर शुरुआती प्रयास है तो फिर कैरी ऑन  प्लीज

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