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मटमैले सपने ( लघुकथा )

उसका सपना था कि वो अंतरिक्ष में जाये , उस धवल और खूबसूरत चाँद को छुए जिसके बारे में वो पढ़ती रही थी | आखिरकार उसे दाखिला मिल गया विदेश की एक यूनिवर्सिटी में |
लेकिन पैसों का इंतज़ाम , ऐसे में याद आया वो |
" तुझे चाँद छूने से कोई नहीं रोक सकता ", वादे पर ऐतबार करके उसके साथ निकल गयी बत्तियों से जगमगाते महानगर की ओर |
अब उस सीलन भरे कोठे में रातों को चांद , सपनों की तरह बहुत मटमैला दिखता था |
मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by विनय कुमार on June 8, 2015 at 5:50pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी .आपके शब्द हौसला बढ़ा देते हैं.

Comment by Shyam Narain Verma on June 8, 2015 at 5:32pm
बहुत सुन्दर और मार्मिक प्रस्तुति,

बधाई , इस प्रस्तुति पर , सादर।

सादर

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