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ईश्वर तुम हो क्या ?

ईश्वर तुम हो कि नहीं हो

इस विवाद में मन उलझाये बैठी हूँ

‘हाँ’ ‘ना’ के दो पाटों के बीच पिसी

कुछ प्रश्न उठाए बैठी हूँ

कि अगर तुम हो तो इतने

अगम, अगोचर और अकथ्य क्यों हो

विचारों के पार मस्तिष्क से परे

‘पुहुप बास तै पातरे’ क्यों हो

तुम्हें खोजने की विकलता ने

जब प्राप्य ज्ञान खँगाला 

तो द्वैत, अद्वैत और द्वैताद्वैत ने

मुझको पूरा उलझा डाला

तुम सुनते हो यदि

या कि मुझे तुम सुन पाओ

एक प्रार्थना है तुमसे

तुम खुद को थोड़ा सरल बनाओ

क्यों नहीं सीधे सीधे

तुम्हारा बोध हो जाये

जो भी टूट कर चाहे

वह तुमको पा जाये

तुम सहज प्राप्त हो जाते तो

जाने कितनी ‘निर्भया’ बच जातीं

धर्म का नाम लेकर उठती

अधर्म की आँधिय़ाँ थम जातीं

क्षुधित बालकों के हाथों में

रोटी बन कर आ जाओ

प्यासी  हलकान धरती पर

मेघ बन बरस जाओ

मरते हुए किसानों के खेतों में

नन्हीं बौरें बनकर खिल जाओ 

रहस्य से पगी हुई परतें

अब खुद उघेढ़ बाहर आओ

अनंत ब्रह्मांड में तुम्हें क्यूँ कर खोजें

क्यों न हर आत्मा में सजीव हो जाओ 

                           तनूजा उप्रेती 

  मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Tanuja Upreti on May 22, 2015 at 9:59am

धन्यवाद मदन मोहन जी 

Comment by Madan Mohan saxena on May 21, 2015 at 3:31pm

क्षुधित बालकों के हाथों में
रोटी बन कर आ जाओ
प्यासी हलकान धरती पर
मेघ बन बरस जाओ
मरते हुए किसानों के खेतों में
नन्हीं बौरें बनकर खिल जाओ
रहस्य से पगी हुई परतें
अब खुद उघेढ़ बाहर आओ
अनंत ब्रह्मांड में तुम्हें क्यूँ कर खोजें
क्यों न हर आत्मा में सजीव हो जाओ

भावपूर्ण चिंतन वाली कविता
हार्दिक एवम् सादर बधाई

Comment by Tanuja Upreti on May 16, 2015 at 8:02am
धन्यवाद हरि प्रकाश जी,धन्यवाद मनोज जी
Comment by मनोज अहसास on May 15, 2015 at 11:03pm
बहुत भावपूर्ण चिंतन वाली कविता
हार्दिक एवम् सादर बधाई
Comment by Hari Prakash Dubey on May 15, 2015 at 9:44pm

तुम सहज प्राप्त हो जाते तो

जाने कितनी ‘निर्भया’ बच जातीं

धर्म का नाम लेकर उठती

अधर्म की आँधिय़ाँ थम जातीं.....बहुत बढ़िया , आध्यात्मिक चिंतन और उसकी कशमकश ! सुन्दर रचना आदरणीया तनूजा उप्रेती जी ! बधाई  

Comment by Tanuja Upreti on May 15, 2015 at 7:25pm
इतनी सुन्दर टिप्पणी के लिए धन्यवाद भैया।
Comment by manmohan mainali on May 15, 2015 at 6:58pm
ईश्वर है,कण-कण मे विद्यमान है|फिर भी चहुँ ऒर ब्याप्त बिसंगतिया और बीद्रुपताये कोमल मन को झकझोरते हुए अस्तित्व व उपलब्धता पर प्रश्न करने को मजबूर कर रही है|काश युवा कबियत्री के सदृश ही संवेदना ब्यापक स्तर पर हो जाती और परिवेश कुछ सुखद हो जाता| सुन्दर विचारो को सहज शब्दों में पिरो कर अंतर्मन मे झांकते-झँझोरते दर्शन की चाशनी मे डुबकी लगाते युवा कवियत्री ने पुनः शानदार प्रस्तुति दी है।
Comment by Tanuja Upreti on May 15, 2015 at 5:23pm

धन्यवाद अमन जी 

Comment by aman kumar on May 15, 2015 at 11:44am

जीवन के पक्ष है , जिनको कोई दुख नही उनके लिए ईश्वर है और जो मुसीबत मे है उनके लिए नही है , अगर स्थिति उलट जाए तो मन के विचार भी बदल जाएंगे , आपकी कशमकश सत्य है ! आभार 

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