For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कब सोचा था यूँ भी होगा // रवि प्रकाश

कब सोचा था यूँ भी होगा-
जिनको मैंने ये कह कर दुत्कारा था-
-"जाओ,तुम हो एक पराजित मन के हित निर्मित
केवल छलना और भुलावा,
कुछ भी तो तुम में सार नहीं है;
मेरा जीवन है अभियान सकल
दिग्विजयी स्वभाव से ही
अश्व नहीं रुकता मेरा छोटे-छोटे घाटों पर
विश्वविजय से पहले इसमें हार नहीं है..."
वही नयन दो मतवाले
मन्वंतर के बाद सही लेकिन
ले कर वही पुरानी सज-धज,ठाठ वही
दसों दिशाओं से घेरे मुझको
दर्प-गर्व और अक्खड़पन से पूछ रही हैं-
"लेकर अपने तीर-तूणीर,कृपाण सभी
कितनी धरती को तुमने जीत लिया है?
क्या तुमको ऐसा नहीं हुआ अनुभव-
परिक्रमाएँ की हैं तुमने रोज़ हमारी
हम से चल कर हम तक ही बस आए हो?"

कब सोचा था यूँ भी होगा-
वही तुम्हारी आँखें
भोर,दुपहरी,रातें बन कर
हर खिड़की से झाँकेंगी,
बादल,बूँदें,बिजली,बरखा हो कर
मेरे तन का सारा कुंदन पिघलाएँगी
सारा चंदन साँसों का
महकाएँगी;
"और डगर है क्या कोई सर्वस्व समर्पण से हट कर?"
मन ये भी पूछ न पाएगा,
निरुपाय वही खो जाएगा।
-मौलिक एवं अप्रकाशित
-28.04.2014

Views: 528

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ravi Prakash on May 1, 2015 at 3:58pm
लिखते समय इतना नहीं सोचा था।आपसे स्नेह और आशीर्वाद पा कर मन अभिभूत हो गया है और निःसंदेह प्रेरित भी।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 1, 2015 at 1:33pm

आहत दर्प का संयत लाक्षणिक प्रयोग !

साधु ! मन झूम गया भाई रवि प्रकाश जी..

कब सोचा था यूँ भी होगा-
जिनको मैंने ये कह कर दुत्कारा था-
-"जाओ,तुम हो एक पराजित मन के हित निर्मित
केवल छलना और भुलावा,
कुछ भी तो तुम में सार नहीं है;  ...  इन पंक्तियों से प्रारम्भ हुआ उन्मुक्त दर्प
"और डगर है क्या कोई सर्वस्व समर्पण से हट कर?"
मन ये भी पूछ न पाएगा,
निरुपाय वही खो जाएगा... .... जैसी पंक्ति पर निढाल हो जाता है.

भाई, आपकी इस कविता मुग्ध कर गयी. कविता में प्रवाह है, धार है, सार है, संसार है !

अतिशय बधाइयाँ और हार्दिक शुभकामनाएँ

Comment by Ravi Prakash on April 30, 2015 at 2:52pm
धन्यवाद आदरणीय श्रीवास्तव जी।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 30, 2015 at 1:13pm

रवि प्रकाश जी

अच्छा प्रयास है .

Comment by Ravi Prakash on April 29, 2015 at 11:11pm
आदाब जनाब और ज़र्रानवाज़ी के लिए शुक्रिया।
Comment by Samar kabeer on April 29, 2015 at 6:30pm
जनाब रवि प्रकाश जी,आदाब,सुन्दर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें |
Comment by Ravi Prakash on April 29, 2015 at 10:36am
धन्यवाद आदरणीय।
Comment by shree suneel on April 29, 2015 at 8:16am
वाह... बहुत बढि़या.. सुन्दर रचना आदरणीय रवि प्रकाश जी, बधाई आपको.
Comment by Ravi Prakash on April 29, 2015 at 7:33am
कोटि कोटि धन्यवाद आ॰ मिथिलेश जी।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 28, 2015 at 10:02pm

आदरणीय प्रकाश जी इस सशक्त रचना पर हार्दिक बधाई 

इन पंक्तियों की लयात्मकता ने मुग्ध कर दिया-

कब सोचा था यूँ भी होगा-
वही तुम्हारी आँखें
भोर,दुपहरी,रातें बन कर
हर खिड़की से झाँकेंगी,
बादल,बूँदें,बिजली,बरखा हो कर
मेरे तन का सारा कुंदन पिघलाएँगी
सारा चंदन साँसों का
महकाएँगी;
"और डगर है क्या कोई सर्वस्व समर्पण से हट कर?"
मन ये भी पूछ न पाएगा,
निरुपाय वही खो जाएगा।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service