For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अर्चक, 

अर्चना करता है !

अर्धांगिनी से,

अराग होकर !

अल्लाह,

दे दे अवकाश मुझे,

इस अवदशा से !

अवर्ण्य हैं,

इनके अत्याचार,

अप्रासंगिक-अपार !

हे असुरारी,

अनुग्रह करो !

अभ्यार्थी की, 

पीड़ा हरो !

(मौलिक एवं अप्रकाशित ) -- राजू आहूजा 

Views: 501

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 13, 2015 at 6:57pm
आभार , आदरणीय राजकुमार आहूजा जी , सादर।
Comment by rajkumarahuja on April 13, 2015 at 5:25pm

@ डा.विजय शंकर जी ! माननीय डा. साहब, बहुत सुन्दर एवं भाव-पूर्ण रचना ! संदर्भित प्रश्न अनादी-काल से दृष्टाओ-मनीषियों को बेचैन करता रहा है ! सूफी फकीर बुल्ले- शाह ने फरमाया है " बुल्ला की जाणा मैं कौन " !  ....सादर   

Comment by rajkumarahuja on April 13, 2015 at 5:08pm

ज़नाब " शकूर " साहब प्रतिक्रया हेतु साधुवाद !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 12, 2015 at 1:00pm

आदरणीय राजकुमार जी इस सारगर्भित रचना के लिये बहुत बहुत बधाई

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 11, 2015 at 10:15pm
आदरणीय राजकुमार आहूजा जी ,
वाह, बहुत ही दार्शनिक विचार हैं , शायद यह प्रश्न मुझे भी कई-कई तरह से सोचने पर विवश करता रहता है। पर यह प्रश्न सदैव अनुत्तरित रह जाता है , शायद यह भी जीवन का ही लक्ष्य है , जिस दिन लोग जान जाएंगे , जीवन की जिज्ञासाएँ ही समाप्त हो जायेंगीं। फिर भी मन कहाँ मानता है ,आठ माह पूर्व ( 10 अगस्त 2014 ) इसी मंच पर मैंने इसी प्रश्न पर यह रचना लिखी थी , आप देखें ,

कोई तो मकसद होगा दुनियाँ में हमारा -डा० विजय शंकर

लोगों ने तेरी दुनियाँ को
क्या से क्या बना दिया
हम तुझे ही बनाते
और तराशते रह गए ॥

लोगों ने तेरी दुनियाँ को
गुल-गुलिस्तां बना दिया
हम जो फूल मिले वो भी
तुझे ही चढ़ाते रह गए ॥

तुमने हमें क्यों भेजा था
इस दुनियाँ जहाँन में
वो सब छोड़ हम तुझे
ही तलाशते रह गए ॥

कोई तो मकसद होगा
दुनियाँ में हमारा भी
हम उसको छोड़ तुझको ही
मकसद समझते रह गए ||

तेरी जो उम्मीदें रही होंगी हमसे
उनको तो हमने जाना नहीं
हर बात पे हम तेरी ही
उम्मीदों पे बैठे रह गए ||

लगा बनाने वाले ने हमें
कुछ काम दिए थे ,जिन्हें
छोड़ अपने सारे काम हम
उसी पे छोड़ बैठे रह गए ॥

मौलिक एवं अप्रकाशित.
डा० विजय शंकर
मिलते रहेंगें ,
सादर।
Comment by rajkumarahuja on April 11, 2015 at 4:32pm

माननीय डा विजय शंकर जी , आपका हार्दिक अभिनन्दन ! हर दृष्टा ने जीवन को अपने ढंग से देखा है और जीया है !किन्तु विडम्बना यह है कि जीवन से स्वम के सम्बन्ध का समाधान शायद ही कोई ढूंड पाया हो !स्वयम के होने का उद्देश्य एक अनुत्तरित प्रश्न सा है ,,,,,,,सादर !   

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 10, 2015 at 9:49pm
प्रथम दृष्ट्या अच्छी है , आदरणीय राजकुमार आहूजा जी ,
पर एक निवेदन है ,
सादर ,
जिंदगी एक बोझ है
पर सोचो जब यह
बोझ नहीं रह जाएगा ,
तब क्या रह जाएगा।
आपको आपकी रचना हेतु बधाई , सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
3 hours ago
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
8 hours ago
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor updated their profile
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service