For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक हिंदी ग़ज़ल/आ चली आ सितम

बह्र-212 212 212 212
बाअदब नजरे पेश
---------------------
चीज है क्या ज़रा देख लूँ बेरहम।
दर्द की है कसम आ चली आ सितम। (१)
****
नूर तो आँख का ले गये हो चुरा,
चाँदनी रात का दे रहे क्यों भरम। (२)
****
हो रही नग्न है नाचती ये ख़ुशी,
क्या नजर चाहती देखना ये हरम। (३)
****
देश को बेचतें आज भी लोग जो,
मोल दे दो उन्हें बेच देगें धरम। (४)
****
माँगते हम नहीं भीख तुमसे कभी,
राह चलते गिरें सम्हलें क्या शरम। (५)
****
लो सतालो हमें फिर रुलालो हमें,
वो लहू भी नहीं अब रहा,हो गरम। (६)
****
खेल ये मात शह का शिकारी सभी,
सत्य का सर झुका है उठा तो कलम। (७)

------------------------
मौलिक एवं अप्रकाशित
सुनील शाहाबादी।

Views: 1055

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on April 7, 2015 at 9:50pm
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आपसे आशीष पाकर रचना कर्म सार्थक प्रतीत हुई स्नेह बनाये रखें विनीत हूँ भाई आपका अंतस: आभार।
Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on April 7, 2015 at 9:50pm
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आपसे आशीष पाकर रचना कर्म सार्थक प्रतीत हुई स्नेह बनाये रखें विनीत हूँ भाई आपका अंतस: आभार।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 7, 2015 at 9:38pm

आदरणीय सुनील भाई , एक कामयाब गज़ल के लिये आपको दिली मुबारकबादें , बधाइयाँ ॥

Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on April 7, 2015 at 8:50pm
आत्मन् मिथलेश जी मुझे भी ऐसा महसूस हुआ था परन्तु एक दो बार गाने के बाद सुर आप ही सही हो गये क्योकि बहर का अपना असर आ ही जाता है बस कहन का अंदाज पकड़ने की कोशिस होनी चाहिये आप हमारी रचना पर गौर करतें और अनमोल सुझावों से नवाजतें हैं इसके लिए आपको दिली शुक्रिया प्यार बनायें रखें आपका आभारी हूँ
Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on April 7, 2015 at 8:42pm
आदरणीय महर्षि त्रिपाठी जी आपकी सराहना पाकर अभिभूत हूँ सादर आभार।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 7, 2015 at 7:45pm
आदरणीय सुनील जी इस प्रस्तुति पर बधाई। बह्र सहज होने पर भी मिसरों पर बह्र का दबाव महसूस हो रहा है। सादर।
Comment by maharshi tripathi on April 7, 2015 at 5:54pm

बहुत सुन्दर आ. सुनील प्रसाद(शाहाबादी) जी ,,हार्दिक बधाई |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service