For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हॉकी खेलने जाती लड़कियां

पैरों में एक जोड़ी हवाई चप्पल,

और छोटी छोटी ख़्वाहिशों से चमकती आँखों  के साथ

हाथों में स्टिक लिए

कुछ लड़कियां हॉकी  खेलने जाती है

भागती है गेंद के पीछे

गेंद में छुपा बैठा है पेट भर खाने का सुख

पहाड़ के उस पार

जंगलों के बीचों बीच नंगे पाँव

एक वृद्ध आदिवासी दंपति

सखुआ के पत्तों को हटाकर

पौधों की जड़ें खोद

रात के खाने का इंतजाम करता है।

उसने कभी हॉकी का स्टिक नहीं देखा है

पर वह सपने देखता है

गेंद  से निकलते गरम माड़ और भात का। 

 मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 474

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Hari Prakash Dubey on April 5, 2015 at 9:16pm

आदरणीय नीरज जी , बहुत खूब , बहुत बहुत बधाई आपको इस सुन्दर रचना पर ! सादर 

Comment by Neeraj Neer on April 5, 2015 at 10:48am

आ॰ मिथिलेश वामनकर जी आपको कविता पसंद आई ... हार्दिक आभार आपका॥ 

Comment by Neeraj Neer on April 5, 2015 at 10:47am

आपको कविता में निहित संवेदना पसंद आई , आपका हार्दिक आभार आ॰ डॉ विजय शंकर जी ... 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 5, 2015 at 12:56am

आदरणीय नीरज कविता की संवेदना से भरपूर जुड़ते हुए जी भर आया. इस सशक्त प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 4, 2015 at 6:23pm
विविधितायें तो असीमित हैं पर आपका संवेदनशील होना अनुपम है। बधाई , आदरणीय नीरज कुमार जी, सादर।
Comment by Neeraj Neer on April 4, 2015 at 6:06pm

आ॰ डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव साहब आपके आशीष और स्नेह के लिए आपका हार्दिक आभार ..... 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 4, 2015 at 6:03pm

आ० नीरज भाई

आपकी कवितायेँ पढता रहता हूँ . आप अपनी कविता में जो संवेदना लाते हो उससे मन भर आता है . आप बहुत आगे तक जांए . सादर .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
17 hours ago
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service