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हक़ के लिये लड़ते सभी झगड़ा कभी थमता नहीं |

११२१२      ११२१२       ११२१२       ११२१२     कामिल - मुतफ़ाइलुन 
हक़ के लिये लड़ते सभी झगड़ा  कभी थमता नहीं | 
शक है वहीँ डर है कहीं प्रिय   पास है समता  नहीं | 
जब साथ है हर बात है कटु बात भी  मिसरी लगे ,
अँखिया वहीँ दिल है कहीं लगता कहीं  ममता नहीं |
छतरी  वहीँ गुड़िया नहीं कब से   रहीं गुम है कहीं ,
मसला वहीँ तनहा अभी   रहना कहीं  जमता नहीं |
पहिया बिना चलती  नहीं  रुकती कहीं मजधार में , 
पटरी वहीँ गड्डी वहीँ   इक   पाँव से थमता  नहीं |
वन में कहीं  चटकी  कली  महके कहीं बहती हवा ,
पथ में कहीं  मजनू पड़ा उठता कभी   क्षमता नहीं |
जग में सभी मिलते रहें  खुश हों सदा मन से सभी  ,
जब वर्मा  गम हो जिसे दिल तो  कहीं रमता नहीं |
श्याम नारायण वर्मा 
(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Hari Prakash Dubey on March 14, 2015 at 10:10am

आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी,इस सुन्दर ग़ज़ल पर हार्दिक बधाई आपको ! सादर 

Comment by Shyam Narain Verma on March 14, 2015 at 10:09am

रणीय खुर्शीद जी रचना पसंद करने के लिए और राय देने के लिए आप का बहुत बहुत आभार | शब्दों के चयन में आगे से ध्यान रखेगें |
सादर ....

Comment by Shyam Narain Verma on March 14, 2015 at 10:02am

आदरणीय शिज्जू 'शकूर ' जी राय देने के लिए आप का बहुत बहुत आभार |
आदरणीय महर्षी त्रिपाठी जी और सोमेश कुमार जी रचना पसंद करने के लिए बहुत बहुत आभार |
सादर ....

Comment by khursheed khairadi on March 14, 2015 at 9:55am
जब साथ है हर बात है कटु बात भी  मिसरी लगे ,
अँखिया वहीँ दिल है कहीं लगता कहीं  ममता नहीं |
छतरी  वहीँ गुड़िया नहीं कब से   रहीं गुम है कहीं ,

मसला वहीँ तनहा अभी   रहना कहीं  जमता नहीं |

आदरणीय श्याम जी ,उम्दा ग़ज़ल हुई है ,बधाई आपको ,बहर -2212--2212--2212--2212 लग रही है |सादर अभिनन्दन |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 14, 2015 at 8:55am

आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी आपकी कोशिश के लिये बधाई पर आप तक्तीअ करने में चूक गये सनातनी छंद की तरह यहाँ हक का मात्राक्रम 11 नहीं बल्कि 2 होगा यही गलती आपके हर शेर में है जहाँ आपने 2 को 11 गिन लिया। दूसरी बात यदि आप किसी नाम का यथा अपने तखल्लुस का इस्तेमाल करते हैं तो उसकी मात्रा नहीं गिराई जा सकती।

Comment by somesh kumar on March 14, 2015 at 8:33am
हक़ के लिये लड़ते सभी झगड़ा  कभी थमता नहीं | 
शक है वहीँ डर है कहीं प्रिय   पास है समता  नहीं | 
जब साथ है हर बात है कटु बात भी  मिसरी लगे ,
अँखिया वहीँ दिल है कहीं लगता कहीं  ममता नहीं |
छतरी  वहीँ गुड़िया नहीं कब से   रहीं गुम है कहीं ,

मसला वहीँ तनहा अभी   रहना कहीं  जमता नहीं |

sunder verma bhai ,bdhai is sunder koshish pr 

Comment by maharshi tripathi on March 13, 2015 at 9:23pm
वन में कहीं  चटकी  कली  महके कहीं बहती हवा ,
पथ में कहीं  मजनू पड़ा उठता कभी   क्षमता नहीं |
जग में सभी मिलते रहें  खुश हों सदा मन से सभी  ,
जब वर्मा  गम हो जिसे दिल तो  कहीं रमता नहीं |,,,,,,,,,,,अच्छी गजल पर दाद कुबुलें आ. Shyam Narain Verma  जी |

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