For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल---१२-२२ १२-२२ १२-२२ आ रहा है अब

ग़ज़ल में दर्द ढल कर आ रहा है अब

कोई दरिया मचल कर आ रहा है अब

 

बड़े साहब ने इक साँचा बनाया है

जिसे देखो पिघल कर आ रहा है अब

 

ज़रा सा होश खोते ही हुआ जादू

जुबां पर सच निकल कर आ रहा है अब

 

चलो अच्छा हुआ जो ठोकरें खायी

गिरा लेकिन सँभल कर आ रहा है अब

 

बनाया मोम से पत्थर जिसे मैंने

मेरी जानिब उछल कर आ रहा है अब

 

गरज़ ढुलते ही रस्ता हो गया चिकना

मेरे घर वो फिसल कर आ रहा है अब

 

जिगर ‘खुरशीद’ का दिन भर फलक पर था

चरागों में भी जल कर आ रहा है अब

 मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 801

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by khursheed khairadi on February 26, 2015 at 8:27am

आदरणीया राजेश कुमारी जी ,स्नेह के लिए आभार |सादर |

Comment by khursheed khairadi on February 26, 2015 at 8:26am

आदरणीय सौरभ सर , आदरणीय समर साहब ,आप जैसी महान विभूतियों का ग़ज़ल पर आना ही हौसलों को नभ तक पहुँचा देता है |इसी तरह समय समय पर आशीर्वाद देने के लिए पधारते रहें |सादर आभार |

Comment by khursheed khairadi on February 26, 2015 at 8:22am

आदरणीय मिथिलेश जी ,आदरणीय हरिप्रकाश जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई ,ग़ज़ल का कहा जाना सार्थक हुआ |मुहब्बत बनाये रखियेगा साहब |सादर |

Comment by khursheed khairadi on February 26, 2015 at 8:19am

आदरणीय गुमनाम साहब,आदरणीय अजय शरमा जी ,आपके शब्दों ने मेरे उत्साह में सकारात्मक वर्द्धि की है |सादर आभार 

Comment by khursheed khairadi on February 26, 2015 at 8:16am

आदरणीय महर्षि त्रिपाठी जी,आदरणीय विजशंकर सर ,आपके स्नेह से अभिभूत हूं |नज़रेकरम बनाये रखियेगा |सादर |

Comment by khursheed khairadi on February 26, 2015 at 8:13am

आदरणीय गोपाल नारायण  सर , आदरणीय गिरिराज सर आशीर्वाद बनाये रखियेगा |सादर |

Comment by khursheed khairadi on February 26, 2015 at 8:11am

आदरणीय धर्मेंदर जी ,आदरणीय दिनेश जी ,आदरणीय नीरज मिश्रा जी ,आप सभी का हृदय से आभारी हूं |अगर मतला यूँ खे जाने पर आपको पसंद आ रहा है तो आपके स्नेह को समर्पित संशोधन प्रस्तुत है |

कोई दरिया मचल कर आ रहा है अब

 ग़ज़ल में दर्द ढल कर आ रहा है अब

आशा है आप स्नेह बनाये रखेगे |सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 24, 2015 at 8:38pm

बड़े साहब ने इक साँचा बनाया है

जिसे देखो पिघल कर आ रहा है अब

 

ज़रा सा होश खोते ही हुआ जादू

जुबां पर सच निकल कर आ रहा है अब

 

बनाया मोम से पत्थर जिसे मैंने

मेरी जानिब उछल कर आ रहा है अब

हमेशा की तरह बहुत उम्दा ग़ज़ल और इन शेरों के तो क्या कहने 

दिली दाद कबूलें 

 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 24, 2015 at 12:15pm

बड़े साहब ने इक साँचा बनाया है

जिसे देखो पिघल कर आ रहा है अब

 

ज़रा सा होश खोते ही हुआ जादू

जुबां पर सच निकल कर आ रहा है अब... .

वाह !

इसे कहते हैं ’आज’ की ग़ज़ल. ’आज’ को संतुष्ट करती हुई इस ग़ज़ल के लिए शुक्रिया और अनेकानेक शुभकामनाएँ, आदरणीय खुर्शीद भाई.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 24, 2015 at 12:42am

आदरणीय खुर्शीद सर, उम्दा ग़ज़ल हुई है 

दिल से दाद कुबूल फरमाए.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service