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रिश्तें है बेतार..... (मिथिलेश वामनकर)

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बादल  जब  बेज़ार  किसी  से  क्या कहना

फिर  कैसी  बौछार किसी  से  क्या कहना

 

ख़ामोशी,  सन्नाटें   किस   की   सुनते  है

बातें  है   बेकार  किसी  से   क्या  कहना

 

बूढ़े  पेड़ों  पर   आखिर   क्या   गुजरी   है

पढ़ लो बस अखबार किसी से क्या कहना

 

रोते   है   वाइज़,    रोने   दो   रस्मों   को

कर लो बस यलगार किसी से क्या  कहना

 

अपनी  छतरी  लेकर    निकलों  राहों   में

बारिश  के आसार  किसी  से क्या  कहना

 

जैसे  तैसे  हम   तो  खुद   को  ढो    लेंगे

काँधें  जो  नाज़ार  किसी से  क्या  कहना

 

दूरी  में     अब   कुर्बत   कैसे      आएगी

रिश्तें  है  बेतार   किसी  से   क्या  कहना

 

आदत   अपनी   जाते - जाते      जाएगी

वो भी है  लाचार किसी से  क्या    कहना

 

महफ़िल  में तनहां  थे  पर  खामोश  रहे  

कब थे हम दरकार किसी से क्या  कहना

 

साहिल से ‘मिथिलेश’ न देखों  लहरों  को

जीवन है मझधार  किसी  से क्या कहना

 

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(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 19, 2015 at 7:12pm

आदरणीय सर्वेश भाई जी सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 19, 2015 at 7:11pm

आदरणीय हरि प्रकाश दुबे जी, रचना पर स्नेह, सराहना और सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार, हार्दिक धन्यवाद 

Comment by Pari M Shlok on February 19, 2015 at 12:12pm
ग़ज़ल का अंदाज़-ए-बयां क्या कहना ...बहुत उम्दा बधाई स्वीकारें
Comment by सर्वेश कुमार मिश्र on February 19, 2015 at 12:01pm

वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह...भाई जी बहुत सुन्दर, आनन्द गया ग़ज़ल पढ़कर, बधाई स्वीकारें 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 19, 2015 at 11:17am

आ0 भाई  मिथिलेश जी , खुबसूरत ग़ज़ल हुई है | सभी अशआर दिल को छूने वाले है |बहुत बहुत बधाई  |

Comment by Hari Prakash Dubey on February 19, 2015 at 8:48am

आदरणीय मिथिलेश जी ,शानदार रचना है .

ख़ामोशी,  सन्नाटें   किस   की   सुनते  है

बातें  है   बेकार  किसी  से   क्या  कहना....सुन्दर 

 

बूढ़े  पेड़ों  पर   आखिर   क्या   गुजरी   है

पढ़ लो बस अखबार किसी से क्या कहना....बहुत बढ़िया ,बहुत बहुत बधाई आपको !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 19, 2015 at 4:56am

आदरणीय मोहन सेठी 'इंतजार' जी 

सराहना हेतु बहुत बहुत आभार जी 

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on February 19, 2015 at 4:28am

वाह वाह.... बहुत खूबसूरत रचना 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 19, 2015 at 1:26am

आदरणीय अजय भाई जी आपकी मुक्तकंठ प्रशंसा पढ़कर झूम जाता हूँ. इस स्नेह और सराहना के लिए दिल से आभार व्यक्त करता हूँ. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 19, 2015 at 1:19am

आदरणीया राजेश कुमारी जी, इस प्रयास पर आपकी सकारात्मक टिप्पणी मुग्ध कर गई. आपका स्नेह और आशीर्वाद मिल गया, सौभाग्य है. नए रचनाकार की मुक्तकंठ प्रशंसा आपके हृदय की विशालता का परिचायक है. ये शाबासी हमेशा ही अच्छा लिखने के लिए प्रेरित करती है. आपने ग़ज़ल के कुछ अशआर कोट करने लायक समझे, जानकार बहुत संतोष हुआ. इस सराहना के लिए हृदय से आभारी हूँ. नमन 

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