For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

डरी आँखों ने देखा वो नज़ारा कैसे---(ग़ज़ल 'राज')

१२२२  १२२२  १२२२ २ 

कभी फुर्सत मिले तो सोच हारा कैसे

बिना तैरे मिले किसको किनारा कैसे

 

जहाँ लगती दिलों की भी बराबर कीमत

वहाँ पैसों बिना भी हो गुज़ारा  कैसे

 

जिसे भाने लगे  कबसे रकीबों के घर

भला दिल से कहें उसको हमारा कैसे

 

मुहब्बत की जहाँ रिमझिम फुहारें गिरती  

सुलग उट्ठा वहाँ अदना शरारा कैसे

 

जहाँ मासूम लाशें हर तरफ फैली थी

डरी आँखों ने देखा वो नज़ारा  कैसे

 

 

नहीं मिलती सदाक़त की जहाँ पर लाठी

कोई फिर दे वहाँ किसको सहारा कैसे

 

लुटेरों का फ़लक के हश्र भी देखा क्या?

हवाओं  ने उन्हें नीचे उतारा कैसे

 

खुदा का दर कभी जिसके लिए बेजां था   

उसी काफिर ने अब उसको पुकारा कैसे

मौलिक एवं अप्रकाशित 

--------------------

Views: 631

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 23, 2015 at 10:20pm

प्रिय प्रतिभा त्रिपाठी जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपकी सराहना मेरी लेखन के प्रति आश्वस्ति का तथा उत्साह का कारण बनी तहे दिल से आभार आपका 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 23, 2015 at 9:53pm

राहुल डांगी जी ,बहुत बहुत शुक्रिया आपका |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 23, 2015 at 9:52pm

आ० डॉ० विजय शंकर जी आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सफल हुआ तहे दिल से आभार आपका | 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 23, 2015 at 9:51pm

आ० गणेश बागी जी ,ग़ज़ल पर आपकी सराहना पाकर उत्साहित हूँ आपका सुझाव स्वागत योग्य है |तहे दिल से आपका बहुत बहुत आभार |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 23, 2015 at 9:49pm

आ० गिरिराज भंडारी जी ,आप जैसे ग़ज़लकार से दाद पाना बहुत उत्साह वर्धक है आपका तहे दिल से बहुत- बहुत आभार. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 23, 2015 at 9:48pm

हरि प्रकाश दूबे जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई तहे दिल से आभार आपका .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 23, 2015 at 9:47pm

मिथिलेश वामनकर जी ,ग़ज़ल पर आपकी दाद पाकर उत्साहित हूँ मेरा लिखना सफल हुआ दिल से आभार आपका 

Comment by Rahul Dangi Panchal on January 23, 2015 at 12:52pm
आदरणीय सुन्दर गजल
Comment by Dr. Vijai Shanker on January 23, 2015 at 2:35am
जिसे भाने लगे कबसे रकीबों के घर
भला दिल से कहें उसको हमारा कैसे
सुन्दर ग़ज़ल, आदरणीय राजेश कुमारी जी , बधाई, सादर।

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 22, 2015 at 11:21pm

//कभी फुर्सत मिले तो सोच हारा कैसे

बिना तैरे मिले किसको तुझको किनारा कैसे// अगर ऐसे कहे तो ....

//सुलग उट्ठा वहाँ अदना शरारा कैसे//  'उट्ठा' पर मैं क्लियर नहीं हो पा रहा.

ग़ज़ल अच्छी लगी आदरणीया राजेश कुमारी जी, बहुत बहुत बधाई.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"ऐसे😁😁"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"अरे, ये तो कमाल  हो गया.. "
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय नीलेश भाई, पहले तो ये बताइए, ओबीओ पर टिप्पणी करने में आपने इमोजी कैसे इंफ्यूज की ? हम कई बार…"
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आपके फैन इंतज़ार में बूढे हो गए हुज़ूर  😜"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय लक्ष्मण भाई बहुत  आभार आपका "
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है । आये सुझावों से इसमें और निखार आ गया है। हार्दिक…"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन और अच्छे सुझाव के लिए आभार। पाँचवें…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय सौरभ भाई  उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार , जी आदरणीय सुझावा मुझे स्वीकार है , कुछ…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल पर आपकी उपस्थति और उत्साहवर्धक  प्रतिक्रया  के लिए आपका हार्दिक…"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपकी प्रस्तुति का रदीफ जिस उच्च मस्तिष्क की सोच की परिणति है. यह वेदान्त की…"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, यह तो स्पष्ट है, आप दोहों को लेकर सहज हो चले हैं. अलबत्ता, आपको अब दोहों की…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज सर, ओबीओ परिवार हमेशा से सीखने सिखाने की परम्परा को लेकर चला है। मर्यादित आचरण इस…"
8 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service