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कुण्डलिया छंद - लक्ष्मण रामानुज

कच्ची डोरी सूत की, बल दे तब मजबूत,

अँखियों से ही प्रेम का, हमको मिले सबूत |

हमको मिले सबूत, ह्रदय में कुसुम खिलावें

बिन श्रद्धा के प्रेम, कभी न ह्रदय को भावे

कह लक्ष्मण कविराय, संत ये कहती सच्चीं 

बिखरे मनके टूट, अगर हो रेशम कच्ची |

(2)

सर्दी भीषण पड़ रही,थर थर काँपे गात,
सर्द हवा चुभती घुसें, कैसे बीते रात | 
कैसे बीते रात, सभी पटरी पर सोते
मन भी रहे अशांत, बिलखतें बच्चें रोते 
यही कष्ट की बात, समाज हुआ बेदर्दी 

रेन बसेरा माय, रुके क्या भीषण सर्दी |

(मौलिक व प्रकाशित)

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 29, 2015 at 11:05am

छंद सराहने के लिए आपका अतिशय आभार श्री सोमेश कुमार जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 29, 2015 at 11:04am

आपका हार्दिक  आभार आदरणीया प्रतिभा त्रिपाठी जी | ओबीओ पर आपको सभी विधाओं की जानकारी शनैः शनैः हो जायेगी | सादर 

Comment by somesh kumar on January 22, 2015 at 7:20pm

प्रेम और शीतलहर वाह !दोनों कुंडलियाँ अलग-अलग होते हुए भी कुछ हद तक जुड़ी हैं|आँखे प्रेम की प्रथम सीढ़ी और सरकारी रैन बसेरे या कह लें गृह-विहीनों के लिए सरकारी प्रेम जो मिडिया की आँखों से होता हुआ सरकार के दिल में खलबली मचाता है |सुंदर |

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 22, 2015 at 11:12am

हार्दिक आभार आपका श्री गिरिराज भंडारी जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 22, 2015 at 11:10am

कुण्डलिया  छंद पसंद करने के लिए शुक्रिया  श्री सुशील सरना जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 22, 2015 at 8:01am

आदरणीय लक्ष्मण भाई , दोनो कुंडलिया  के लिये आपको बधाइयाँ ।

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 21, 2015 at 12:34pm

छंद सराहने के लिए आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय श्री गणेशजी "बागी" जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 21, 2015 at 12:33pm

भाव सराहने के लिए और त्रुटी की ओर ध्यान  दिलाने के लिए आपका हार्दिक  आभार श्री डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 21, 2015 at 11:59am

छंद सराहने के लिए आपका अतिशय आभार श्री हरी प्रकाश दुबे जी और श्री मिथिलेश वामनकर जी 

Comment by Sushil Sarna on January 20, 2015 at 7:52pm

कच्ची डोरी सूत की, बल दे तब मजबूत,
अँखियों से ही प्रेम का, हमको मिले सबूत |
वाह आदरणीय रामानुज जी क्या सुंदर भावों को आपने कुण्डलिया छंदों में अपने पिरोया है -बहुत खूब -हार्दिक बधाई सर।

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