For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कुण्डलिया छंद - लक्ष्मण रामानुज

कच्ची डोरी सूत की, बल दे तब मजबूत,

अँखियों से ही प्रेम का, हमको मिले सबूत |

हमको मिले सबूत, ह्रदय में कुसुम खिलावें

बिन श्रद्धा के प्रेम, कभी न ह्रदय को भावे

कह लक्ष्मण कविराय, संत ये कहती सच्चीं 

बिखरे मनके टूट, अगर हो रेशम कच्ची |

(2)

सर्दी भीषण पड़ रही,थर थर काँपे गात,
सर्द हवा चुभती घुसें, कैसे बीते रात | 
कैसे बीते रात, सभी पटरी पर सोते
मन भी रहे अशांत, बिलखतें बच्चें रोते 
यही कष्ट की बात, समाज हुआ बेदर्दी 

रेन बसेरा माय, रुके क्या भीषण सर्दी |

(मौलिक व प्रकाशित)

Views: 716

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 29, 2015 at 11:05am

छंद सराहने के लिए आपका अतिशय आभार श्री सोमेश कुमार जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 29, 2015 at 11:04am

आपका हार्दिक  आभार आदरणीया प्रतिभा त्रिपाठी जी | ओबीओ पर आपको सभी विधाओं की जानकारी शनैः शनैः हो जायेगी | सादर 

Comment by somesh kumar on January 22, 2015 at 7:20pm

प्रेम और शीतलहर वाह !दोनों कुंडलियाँ अलग-अलग होते हुए भी कुछ हद तक जुड़ी हैं|आँखे प्रेम की प्रथम सीढ़ी और सरकारी रैन बसेरे या कह लें गृह-विहीनों के लिए सरकारी प्रेम जो मिडिया की आँखों से होता हुआ सरकार के दिल में खलबली मचाता है |सुंदर |

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 22, 2015 at 11:12am

हार्दिक आभार आपका श्री गिरिराज भंडारी जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 22, 2015 at 11:10am

कुण्डलिया  छंद पसंद करने के लिए शुक्रिया  श्री सुशील सरना जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 22, 2015 at 8:01am

आदरणीय लक्ष्मण भाई , दोनो कुंडलिया  के लिये आपको बधाइयाँ ।

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 21, 2015 at 12:34pm

छंद सराहने के लिए आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय श्री गणेशजी "बागी" जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 21, 2015 at 12:33pm

भाव सराहने के लिए और त्रुटी की ओर ध्यान  दिलाने के लिए आपका हार्दिक  आभार श्री डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 21, 2015 at 11:59am

छंद सराहने के लिए आपका अतिशय आभार श्री हरी प्रकाश दुबे जी और श्री मिथिलेश वामनकर जी 

Comment by Sushil Sarna on January 20, 2015 at 7:52pm

कच्ची डोरी सूत की, बल दे तब मजबूत,
अँखियों से ही प्रेम का, हमको मिले सबूत |
वाह आदरणीय रामानुज जी क्या सुंदर भावों को आपने कुण्डलिया छंदों में अपने पिरोया है -बहुत खूब -हार्दिक बधाई सर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
yesterday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service