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गजल- मुझे शायरी में पुकार दे!

११२ १२ ११२ १२

तु गजल में थोडा खुमार दे!
तु जरा सा और सँवार दे!!

तेरे लफ्ज तेरी जमीन है!
इन्हें आँसुओं से निखार दे!!

उसे भूल जा है जो बेवफा!
ये लिबास गम का उतार दे!!

यूं घुमा फिरा के न बात कर!
मुझे साफ साफ नकार दे!!

मैं बिगड गया मुझे डाँट माँ!
मेरी जिन्दगी को सुधार दे!!

या खुदा तु कह दे घटाओं से!
मेरे खेत को भी दुलार दे!!

कि मैं दफ्न हूँ मेरे शे'र में!
मुझे शायरी में पुकार दे!!


मौलिक व अप्रकाशित!

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Comment

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Comment by Rahul Dangi Panchal on January 14, 2015 at 2:09pm
आदरणीय khursheed khairadi जी बहुत बहुत शुक्रिया! मैं कोशिश करता हुँ
Comment by khursheed khairadi on January 14, 2015 at 12:28pm

वाह ..... वाह आदरणीय गिरिराज सर क्या बात कही है 'ज़रा और ख़ुद को संवारा करें '   | सादर 

Comment by khursheed khairadi on January 14, 2015 at 12:18pm

आदरणीय राहुल साहब , मैंने पहले भी आपसे निवेदन किया है कि मैं भी आपकी तरह एक साधक भर हूं इसिलिय प्रमाणिकता के साथ कुछ नहीं  कह सकता,  किंतु अगर आपकी ग़ज़ल को बहरे कामिल मुरब्बा सालिम  (मु तफ़ा इलुन x२) \१-१२-१२    १-१२-१२  लें तो आप इसे परिवर्तित (मुज़ाहिफ ) रूप दें तो आप नियमानुसार दोनों रुक्न में कहीं मात्रा गिरा सकते हैं  सदर \इब्तिदा और अरूज़-ज़रब में निम्न बदलाव कर सकते हैं ---२-१२\१-१२ \२२\२२२\१२-१२\२१-१२ तथा १-१२-२  आपने जो रूप सुझाया है (१-१२-२२ ) यह मूल रुक्न में मात्रा में इज़ाफ़ा कर रहा है ,जो मेरी अब तक की जानकारी की हद से बाहर  है |मेरे अल्पज्ञान पर भरोसा न करें  और भी चर्चा कर लिरावें |सादर 

Comment by Rahul Dangi Panchal on January 14, 2015 at 12:17pm
आदरणीय गिरीराज जी मैं कोशिश करता हुँ ! देखता हुँ कहाँ तक सुधार सकता हुँ सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 14, 2015 at 12:14pm

आदरणीय राहुल भाई , इतनी गहरी जानकारी तो मुझे भी नहीं है  , फिर भी इतना ज़रूर कह सकता हूँ अगर काफिया मे ही गड़बड-ई हो तो उसे शायद ग़ज़ल से ख़ारिज़ कर दिया जाता है । आप ऐसा क्यों नहीं कर लेते --

गज़ल मे / ही उसको / पुकारा / करे    122    122   122   12

ज़रा औ/ र ख़ुद को/  सँवारा / करे       122     122   122   12

इसी के अनुसार बाक़ी शेर भी सुधार लीजिये , अगर अच्छा लगे तो

मेरे ख़याल से ये बह्र भी मान्य बहर है ।

Comment by Rahul Dangi Panchal on January 14, 2015 at 11:50am
आदरणीय khursheed khairadi जी बस एक बात और बताने का कष्ट करें तो बडी मेहरबानी होगी!

क्या यह बहर हो सकती है अथवा नहीं!
११२ १२ ११२ २२
Comment by Rahul Dangi Panchal on January 14, 2015 at 11:48am
आदरणीय khursheed khairadi जी दुबारा मार्ग दर्शन करने के लिए मैं आपका बहुत बहुत आभारी हुँ! मैं पुन: सुधारने का प्रयत्न करूंगा

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 14, 2015 at 11:37am
हा हा हा... फेसबुक के मीरो ग़ालिब। क्या खूब कहा खुर्शीद सर।
Comment by khursheed khairadi on January 14, 2015 at 11:33am

आदरणीय राहुल डांगी साहब ,पहले तो नाम टाइपिंग में हुई गलती के लिए क्षमा प्रार्थी हूं |'तक्ती अनुसार मतला पढ़ें '

तु ग़ज़ल मं उस \क पुका र कर 

तु ज़रा स औ \ र सँवा र कर        अगर बहर के अनुसार आप मतला रखेंगे तो आपके काफ़िये पुकार और सँवार ही मान्य होंगे जिनसे शेर बेमानी हो जायेगा |  रही बात ग़ज़ल नहीं रही की तो राहुलजी सर आजकल फेसबुक पर इतने मीरो-ग़ालिब छाये हुये हैं कि बहुमत के हिसाब से तो हमें सही ग़ज़ल लिखना छोड़ ही देना चाहिए |मैं तो ख़ुद ग़ज़ल का साधक भर हूं , अतः आप मेरी बात की सिरियस न लेकर और भी मशविरा लेकर उचित निर्णय स्वयं ही लें |सादर 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 14, 2015 at 11:32am

मैं बिगड गया, तु कहाँ है माँ!
मुझे डाँट फिर मुझे मारा कर!!

उम्दा भावाभिव्यक्ति  है आदारणीय राहुल भाई, हार्दिक बधाई l

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