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सिमट रहा है जीवन का वृत्त

परिधि कम ही होगी धीरे- धीरे

 

लोगों के टोकने पर

जाने लगा हूँ पार्क में टहलने 

मन बहलता तो नहीं है

पर देता हूँ बहलने

शरीर को मेन्टेन रख्नना है

पर गलेगी देह भी धीरे-धीरे

वृत्त की परिधि कम होगी धीरे-धीरे

 

पढ़ना चाहता हूँ

किताबे दशको तक मित्र रही है मेरी

पर अब सब धुन्धला जाता है

चश्मा भी अब काम नहीं आता है

लिखना तो बंद था ही

हुयी पढने की भी मनाही

ज्योति भी यूँ ही बुझेगी धीरे-धीरे

वृत्त सिकुडेगा और धीरे-धीरे  

 

जब सुन नहीं पाउँगा

बोल नहीं पाउँगा

चल नहीं पाउँगा

डोल नहीं पाउँगा

दूसरो के लिए बोझ बनूँगा धीरे-धीरे

वृत्त होगा फिर एक शून्य धीरे-धीरे  

 

 

 शून्य को भी होता है

अंत में सिकुड़ना

जिसे कहते परिधि का

केंद्र से जुड़ना

बिंदु से ही पूर्णता मिलेगी धीरे–धीरे

पूर्णता को प्राप्त करूंगा धीरे –धीरे

 

 

बिन्दु छोटा होकर

अदृश्य हो जाता हैं

पार्थिव दृष्टि से

नजर नहीं आत्ता है

मै भी नहीं दूंगा दिखाई धीरे–धीरे

पूर्ण होकर पूर्ण से मिलूंगा धीरे -धीरे

ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते.
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते..

( पूर्ण है I यह पूर्ण है I पूर्ण से पूर्ण उदित होता

है I पूर्ण का पूर्ण लेकर  पूर्ण ही शेष बचता है I )

 

 

 (मौलिक व् अप्रकाशित )

    

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 12, 2015 at 7:34pm

आदरणीय दादा शरदिंदु जी

आपका कहना -इतनी आसानी से पूर्णत्व प्राप्त नहीं होगा' बिलकुल सत्य है  i उतना ही शाश्वत यह भी है कि इन ज्क्लंत प्रश्नों के उत्तर अधर में हैं i सबके अपने अलग अलग कयास है i सादर i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on February 3, 2015 at 5:56pm
शाश्वत सत्य को लेकर लिखी गयी ऐसी सात्विक रचना के बारे में कुछ भी कह पाना सहज नहीं. आपके वृत्त की परिधि को बहुत से मासूम रचनाकारों की अबोध अंगुलियाँ थामे हुई हैं....इतनी आसानी से "पूर्णत्व" प्राप्ति नहीं होगी आदरणीय. अशेष शुभकामनाएँ.
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 9, 2015 at 12:27pm

आ० खुर्शीद जी

आपकी  सुष्ठु  प्रतिक्रिया से  मन प्रसन्न हो गया i सादर i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 9, 2015 at 12:24pm

आपका बहुत-बहुत आभार ii  आ 0 गुमनाम जी

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 9, 2015 at 12:21pm

सोमेश जी

आपका बहुत-बहुत आभार i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 9, 2015 at 12:20pm

आदरणीय अनुज भंडारी जी

आपकी  अर्थ पूर्ण टिप्पणी से मन प्रसन्न हो गया i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 9, 2015 at 12:17pm

आ० सरना जी

आपकी आत्मीय टिप्पणी से अभिभूत हुआ i सादर  i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 9, 2015 at 12:14pm

आ० हरिवल्लभ  जी

आपकी टीप ने अभिभूत कर दिया i सादर  i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 9, 2015 at 12:10pm

विजय सर !

आपका बहुत-बहुत आभार i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 9, 2015 at 12:08pm

आ० माहेश्वरी जी

आपका बहुत-बहुत आभार i

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