For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नवगीत : दिन में दिखते तारे

नवगीत : दिन में दिखते तारे.

तिल सी खुशियों की राहों में,

खड़े ताड़ अंगारे.

कैसे कटें विपत्ति के दिन,

दिन में दिखते तारे.

 

आशा बन बेताल उड़ गयीं,

उलझे प्रश्न थमाकर.

मुश्किल का हल खोजे विक्रम,

अपना चैन गवाँकर.

मीन जी रही क्या बिन जल के.

खाली पड़े पिटारे.

कैसे कटें विपत्ति के दिन..

दिन में दिखते तारे.

 

दर्पण हमको रोज दिखाता,

एक फिल्म आँखों से,

पत्तों जैसे दिवस झर गए,

इन सूखी शाखों से.

पल क्षण कटे साल भी बीते.

सब कारे अँधियारे,

कैसे कटें विपत्ति के दिन..

दिन में दिखते तारे.

 

कटे हाथ में सब्बल कैसी,

एक टांग क्या दौड़े,

बृद्धावस्था की लाठी भी,

बूढ़े का सर फोड़े.

स्यानी बिटिया की मजबूरी

पाले बूढ़े बारे.

कैसे कटें विपत्ति के दिन..

दिन में दिखते तारे.

**हरिवल्लभ शर्मा 01.01.2015

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 868

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by harivallabh sharma on January 2, 2015 at 7:31pm

आदरणीय शिज्जू "शकूर" जी आपका कुशल मार्गदर्शन समय समय पर रचना धर्मिता को पुष्ट करता है ..हार्दिक आभार आपका.

Comment by harivallabh sharma on January 2, 2015 at 7:29pm

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आपकी उत्साहित करती प्रतिक्रिया का स्वागत ..हार्दिक आभार.

Comment by harivallabh sharma on January 2, 2015 at 7:26pm

आदरणीय Hari Prakash Dubey जी आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार आपका.

Comment by harivallabh sharma on January 2, 2015 at 7:25pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी आपकी उत्साहित करती प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार..

Comment by harivallabh sharma on January 2, 2015 at 7:23pm

आदरनीय SHARAD SINGH "VINOD" जी आपके द्वारा गीत की उत्तम समीक्षा की गई अपना अनमोल मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु हार्दिक आभार.

Comment by harivallabh sharma on January 2, 2015 at 7:20pm

आदरणीय Shyam Narain Verma जी आपकी स्नेहिल प्रक्रिया हेतु ह्रदय से आभार ..सादर.

Comment by khursheed khairadi on January 2, 2015 at 1:44pm

आशा बन बेताल उड़ गयीं,

प्रश्न यक्ष थमाकर.

मुश्किल का हल खोजे विक्रम,

अपना चैन गवाँकर.

बिन जल के क्या मीन जी रही.

खाली पड़े पिटारे.

कैसे कटें विपत्ति के दिन..

दिन में दिखते तारे.

आदरणीय हरिवल्लभ सर जी ,  सभी बंध एक से बढ़कर एक है |नवगीत में आपकी सिद्धता प्रमाणित करती हुई सुन्दर रचना है |सादर अभिनन्दन 

Comment by somesh kumar on January 1, 2015 at 8:40pm

नव वर्ष का सुंदर नवगीत 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 1, 2015 at 7:53pm

आदरणीय हरिवल्लभ शर्मा सर हमेशा की तरह इस बार भी बेहतरीन रचना हुई है बहुत बहुत बधाई आपको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 1, 2015 at 7:53pm

आदरणीय हरिवल्लभ शर्मा सर  सुन्दर नवगीत की प्रस्तुति के लिये हार्दिक बधाई.

सुन्दर पंक्तियाँ -

दर्पण हमको रोज दिखाता,

एक फिल्म आँखों से,

पत्तों जैसे दिवस झर गए,

इन सूखी शाखों से.

पल क्षण कटे साल भी बीते.

सब कारे अँधियारे,

कैसे कटें विपत्ति के दिन..

दिन में दिखते तारे.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service