For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हां मैं एक पुरुष हूँ और अगर मैं एक पुरुष हूँ !……..

हां मैं एक पुरुष हूँ और अगर मैं एक पुरुष हूँ !
तो मुझे बनना भी चाहिए उस पुरुष की तरह

जो बेरोजगारी की भेंट चढ़कर, अपने फर्ज़ निभाता रहे,
सुबह से शाम तक रोजी रोटी की जुगाड़ में
जैसे हो कोई जादूगर, जिसके हांथों में हो गरीबी का हुनर
टूटी चप्पलें और घिसते पेंट की मोहरी से, झलके उसकी गरीबी
और ये नाक वाले नेता, छीन सके हम गरीबों के मुंह का निवाला
और कह सकें “तुम मुझे वोट दो मैं तुम्हे नौकरी दूंगा”
जैसे हम गरीब हों बिना पेट के पुतले, पेट हो जैसे मेरा एक खुबसूरत डस्टबिन,
जिसमें ये दंभी नाक वाले दबंग नेता डाल सकें, घटिया राशन और घटिया चीनी
और मैं मुस्करा कर कहूँगा ................“प्लीज़ यूज़ मी”.............
हां मैं एक गरीब हूँ ! और अगर मैं एक गरीब पुरुष हूँ !
तो मुझे देखना होगा भ्रष्ट नेताओं का छल कपट
सहना होगा गरीबी नामक दर्द का दंश, वो भी इसलिए
क्योंकि भुखमरी गरीबों की बपौती है जिन्होंने देखी नहीं थाली में रोटी है

मेरी तरह एक गरीब माँ असहाय है और बेबस है  

भूख से तडपते बच्चे को देखकर, उसकी आँखों में आसूं हैं

ठंडी चूल्हे की आग हैं, खौलती आंतें हैं, सूखी छाती, शून्य को तकती आँखें हैं

खाली पतीली में खडकते चम्मच की असहनीय आवाज़ उसे सहनी है

मैंने रोज यहाँ से गुजरते हुए, बच्चे को भूख से तडपते हुए देखा है

और मैं मुस्कराकर कहूँगा.......……..मुझमें सहने की छमता है ….....
हां मैं एक गरीब हूँ  और अगर मैं एक गरीब पुरुष हूँ
तो मुझे उन् सारी परम्पराओं, नियमों, कायदों का अंधानुकरण करना ही है

जिन्हें बनाया गया है सिर्फ हमारे लिए कोई भी सवाल उठाए बिना
अगर कोई सवाल करूँगा, तो पेट की आग में दफ़न मासूमों का स्वप्न होगा 

सरकार के विरुध कुछ ना कहना है बस सफ़र करते हुए गरीबी से लड़ना है

इसलिए मुझे चुप रहना है क्योंकि सुदामा की गरीबी मिटाने को श्री कृष्णा थे
अब इस कलयुग में न तो कोई श्री कृष्णा है ना ही कोई राजा हरिश्चन्द्र
हर बार सब गणतंत्र दिवस मनाएंगे, स्वतन्त्रता दिवस भी मनाएंगे   

और मैं मुस्कराकर कहूँगा...........मैं भारत देश का निवासी हूँ......


मौलिक एवं अप्रकाशित 
सुनीता दोहरे ....

 

Views: 617

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 3, 2015 at 7:40am

वैचारिक रचना के लिए बधाई आदरणीया. कविता का स्वर सहज है लेकिन उसका प्रभाव तीखा है. यह इस कविता की विशेषता है.. .
हार्दिक शुभकामनाएँ..

भाई सोमेशजी ने सही विन्दु उठाये हैं. उनके सुझाव सटीक हैं.

Comment by sunita dohare on January 2, 2015 at 2:06pm

somesh kumar जी , आपका बहुत बहुत धन्यवाद ! त्रुटियों हेतु छमाँ करें ! सादर प्रणाम !!"

Comment by sunita dohare on January 2, 2015 at 2:04pm

Hari Prakash Dubey जी, आपको भी मेरी ओर से नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाये ! बहुत बहुत धन्यवाद !  सादर प्रणाम !!"

Comment by sunita dohare on January 2, 2015 at 2:03pm

मिथिलेश वामनकर  जी , बहुत बहुत धन्यवाद !  सादर प्रणाम !!"

Comment by somesh kumar on January 1, 2015 at 9:11pm

नव वर्ष की बधाई ,मंच पर आपकी पहली रचना से गुजर रहा हूँ |बेशक  रचना  बहुत अधिक भावुकता से लबरेज़ है और एक इन्सान की ,गरीब की ,विवशता की और इंगित  करती है , कुछ टाइपिंग त्रुटी भी है ,जैसे ड़-ड ,विरुद्ध -विरुध ,पैन्ट -पेंट ,कृपया प्रभावी रचना में इनका ध्यान रखें ,

Comment by Hari Prakash Dubey on January 1, 2015 at 7:55pm

 “तुम मुझे वोट दो मैं तुम्हे नौकरी दूंगा” ....इस रचना पर हार्दिक बधाई  एवम् नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाये !आदरणीया सुनीता दोहरे जी !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 1, 2015 at 7:06pm
सुन्दर और भावपूर्ण प्रस्तुति हार्दिक बधाई
Comment by sunita dohare on January 1, 2015 at 2:27pm

 डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर जी , सबसे पहले तो आपको मेरी ओर से नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाये !

 बहुत बहुत धन्यवाद !  सादर प्रणाम !!"

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 1, 2015 at 12:54pm

मेरी तरह एक गरीब माँ असहाय है और बेबस है  

भूख से तडपते बच्चे को देखकर, उसकी आँखों में आसूं हैं

ठंडी चूल्हे की आग हैं, खौलती आंतें हैं, सूखी छाती, शून्य को तकती आँखें हैं

खाली पतीली में खडकते चम्मच की असहनीय आवाज़ उसे सहनी है

मैंने रोज यहाँ से गुजरते हुए, बच्चे को भूख से तडपते हुए देखा है-------सुमधुर भाव्  i अच्छी रचना i

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service